बात नई नहीं है। इसीलिए यह ज्यादा चिंताजनक है। देश में प्राथमिक शिक्षा हमेशा से बदहाल रही है। लेकिन मुफ्त एवं अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) बनने के बाद इस हाल में सुधार की आशा की गई थी। बीच-बीच में ऐसी खबरें भी आईं कि एक अप्रैल 2009 को आरटीई लागू होने के बाद स्कूलों की हालत में सुधार हुआ है। लेकिन ताजा सरकारी रिपोर्ट ने इस धारणा को तार-तार कर दिया है। संसद में पेश मानव संसाधन विकास मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक देश भर में एक लाख से ज्यादा- स्कूलों में केवल एक शिक्षक या शिक्षिका मौजूद है। ऐसे स्कूलों की कुल संख्या 105630 है। जाहिर है, इस रिपोर्ट से सामने आए आंकड़ों ने शिक्षा व्यवस्था की सबसे बुनियादी कमी पर फिर रोशनी डाली है। इसके मुताबिक मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा यानी 17874 स्कूल एक शिक्षक के भरोसे हैं। बिहार में 3708 स्कूल एक शिक्षक पर निर्भर हैं। कमोबेश यहीं स्थिति छोटे हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड की भी है। हालांकि केंद्र शासित प्रदेशों की स्थिति कई बड़े राज्यों के मुकाबले बेहतर है। दमन दीव, पुडुचेरी, लक्षद्वीप और चंडीगढ़ में ऐसा कोई स्कूल नहीं है जहां सिर्फ एक शिक्षक हो। अब जहां एक टीचर हो, वहां कैसी पढ़ाई होती होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। अकेले शिक्षक को कम-से-कम पांच कक्षाओं और उनके सभी विषयों को पढ़ाना पड़े, तो वह योग्य और इच्छुक होने की स्थिति में भी कितनी शिक्षा दे पाएगा! ऊपर से मिड-डे मील जैसी योजनाओं के अमल में भी शिक्षकों की भूमिका होती है। तो अनुमान लगाया जा सकता है कि ऐसे स्कूलों में बच्चे सिर्फ हाजिरी देने आते हैं। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की देखरेख में हर साल स्कूली शिक्षा की जिलेवार स्थिति की सूचना जुटाने के लिए सर्वेक्षण कराया जाता है। राज्य सरकारों के शिक्षा विभाग और सर्व शिक्षा अभियान साझा रूप से इसमें शामिल होते हैँ। ताजा आंकड़े इसी सर्वे से सामने आए। इनका निहितार्थ है कि राज्य सरकारों ने आरटीई कानून का बेहिचक उल्लंघन किया है। आरटीई कानून में प्रावधान है कि हर 30 से 35 छात्र पर एक शिक्षक होना चाहिए। लेकिन बड़ी संख्या में सरकारी स्कूलों में इस शर्त को पूरा नहीं किया गया है। जब बुनियादी हालत यह हो, तो फिर शिक्षा की गुणवत्ता की चर्चा ही बेमतलब है। मगर यह जरूर ध्यान में रखना चाहिए कि जिस देश में करोड़ों बच्चे तालीम से इस हद तक महरूम हों, वह विकसित होने का सपना नहीं देख सकता।
-ललित भट्ट
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