औचक निरीक्षण में गायब मिले शिक्षक। समय से पूर्व कर दी गई छुट्टी, घटिया स्तर का दिया जा रहा है मिडे डे मील। रोजाना इस तरह के शीर्षकों से समाचार पत्र भरे रहते है। यह बताने के लिए काफी है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था पटरी से उतरी हुई है। व्यवस्था में सुधार की बात अब तक सरकारें करती आई है। इसके लिए कई विधालयों से बदतर है। बताया जा रहा है कि माॅडल विधालयों में माॅडल जैसा कुछ भी नहीं है। अधिकांश विधालयों में शिक्षक ही नही है। कंप्यूटर आदि धूल फांक रहें है। बच्चों के बैठने के लिए मेज कुर्सियों नहीं है। इससे साफ पता चलता है कि सरकारें प्राथमिक शिक्षा के प्रति कितनी संवेदनशील है। वहीं सरकार की इसी लापरवाही का खामियाजा जनता को उठाना पड़ रहा है। वह पेट काटकर निजी स्कूलों को मोटी फीस भरने को मजबूर हो रहें है। कहते है बच्चे देश का भविष्य होते है। इसलिए भविष्य की नींव मजबूत होनी आवश्यक है। इसलिए सरकारों को प्राथमिकता शिक्षा पर अधिक से अधिक ध्यान देना चाहिए।
नवीन जोशी, हरिद्वार
साभार जागरण
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