हम चुनाव पर बातचीत कर रहे थे तभी एक परिचित बच्ची ने लगभग चिल्लाकर पूछा- आंटी, आप किसे वोट देंगी? फिर उसने अपने मनपसंद नेता का नाम पुकारा और कहा-उन्हें ही वोट दीजिएगा। बच्ची के इस तरह से कहने पर लगा कि हम चाहे ये मानते रहें कि बच्चों को भला चुनाव से क्या मतलब। जब बड़े हो जाएंगे तो अपने आप जान जाएंगे, लेकिन बच्चों की दिलचस्पी चुनावों में होती है। वे रात-दिन नेताओं को टीवी पर देखते है। घर और स्कूल में होने वाली लगातार की बातचीत को सुनते है। सालों पहले भोपाल से लौटते हुए मुझे एक तीन साल का बच्चा मिला था। जो दीवारों पर लगे नेताओं की तस्वीरों और पोस्टरों को देखकर जोर-जोर से उनका सही नाम पुकारने लगता था। उसकी जानकारी और यादाश्त बता रही थी कि वह राजनीति और राजनेताओं की चर्चा से बहुत दूर नही है।
बच्चे जब कुछ बड़े होते हैं तो इन नेताओं के बारे में बहुत से सवाल-जवाब भी करते है। इन दिनों भी जब टीवी के संवादाता चुनाव के बारे में घर वालों से बातचीत करते दिखाई देते है तो कई बार बच्चे नारे लगाने लगते हैं कि किसे वोट देना है। अरसे से स्कूलों में होने वाली फेंसी ड्रैस प्रतियोगिताओं में बच्चे तरह-तरह से नेताओं का रूप धरते रहें है। उनके माता-पिता या अध्यापक उन्हें इस तरह से सजाते है। जिस नेता का देश में बहुत सम्मान होता है वे अपने बच्चे को वहीं बनाते है। आज तक बच्चे नेहरू, गांधी, शास्त्री, सुभाषचंद्र बोस, भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, इंदिरा गांधी बनते चले आ रहें है। अब बहुत से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रूप धरते नजर आते है। गांधी, नेहरू, शास्त्री इंदिरा आदि के बाद के और नरेंद्र मोदी से पहले के दौर में क्या नेता नही रहे। लेकिन इस बीच के दौर के नेताओं का रूप बच्चे बहुत कम धरते है। आखिर ऐसा क्यों ? क्या इस दौर के नेता माता-पिता को ऐसे लगते कि वे अपने बच्चे को वैसा बनाने की कल्पना कर सकें। या उन्हें अपना आदर्श नेता मान सकें।
लेखक क्षमा शर्मा
साभार हिन्दुस्तान
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