कोचिंग के बाहर


भारत में लंबे वक्त से षिक्षा में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ रही है, यहां तक कि कई मायनों में भारत के षिक्षा क्षेत्र को षिक्षा उद्योग भी कहा जा सकता है। इस षिक्षा उद्योग में एक बडा हिस्सा कोचिंग  उद्योग का है। देष के तमाम छोटे-बडे षहरों, कस्बों में तरह-तरह के कोचिंग संस्थान चल रहे हैं, जो आईआईटी, मेडिकल, में प्रवेष के अलावा संघ लोक सेवा आयोग की प्रतियोगी परीक्षाओं और अन्य प्रतियोगी परिक्षाओं के लिए कोचिंग करते है। राजस्थान का कोटा षहर तो कोचिंग के लिए ही जाना जाता है। कोचिंग उद्योग की पूंजी अरबों रूपये में पहुंच गई है और कोचिंग संस्थानों के बडे-बडे विज्ञापन देखकर यह अदांजा लगाया जा सकता है कि मार्केटिंग में कितना पैसा खर्च करने की इस उद्योग की क्षमता है। यह बोलबाला देखकर लगता है कि तमाम प्रतियागी परीक्षाओं में कामयाबी के लिए कोचिंग अनिवार्य है, बिना कोचिंग लिए किसी प्रतिभाषाली छात्र को भी कामयाबी मिलना मुष्किल है। आईआईटी गुवाहाटी नें इस साल चुने गए सारे छात्रोंके बारे में जो अध्ययन किया, वह इस विशय पर काफी रोषनी डालता है।
    अध्ययन के मुताबिक, आईआईटी में चुनें गए 10,576 छात्रों में से 5,539 छात्र, यानि 52.4 प्रतिषत ऐसे छात्र थे, जिन्होंने कोचिंग नहीं ली। 4,711 छात्र, यानि 44.5 फीसदी कोचिंग संस्थानों से पढकर कामयाब हुए। बाकी लगभग दो प्रतिषत छात्रों नें या तो निजी टयूषन लिए या फिर पत्राचार से प्रषिक्षण हासिल किया। यानि कामयाब होने वाले छात्रों में से बहुमत ऐसे छात्रों का है, जिन्होंने अपने बूते ही सिर्फ स्कूल की पढाई की मदद से कामयाबी हासिल की। इसे इस बात का प्रमाण माना जा सकता है कि प्रतियोगी परीक्षाओं में कामयाबी के लिए कोचिंग अनिवार्य नहीं है। इसे ऐसे भी देख जा सकता है कि आधे से कुछ ही कम छात्रों ने कोचिंग का सहारा लिया। कोचिंग औपचारिक षिक्षा-व्यवस्ता का हिस्सा नहीं है, कोचिंग संस्थानों की इस कदर प्रभावषाली उपस्थिति दरअसल षिक्षा-व्यवस्था पर प्रष्नचिह्नन लगाती है। ज्यादातर षिक्षाविद कोचिंग कारोबार को अच्छी नजर से नहीं देखते। ज्यादातर छात्र और अभिभावक भी इसे एक अनिवार्य बुराई मानकर ही स्वीकार करते है। आईआईटी के प्रबंधक और षिक्षक भी कोचिंग के आलोचक ही है। उनका कहना है कि प्रवेष परीक्षा किसी छात्र के उŸार रट लेने की क्षमता की कसौटी नहीं होनी चाहिए। आईआईटी में वे ऐसे छात्र चाहते हैं, जिनकी रचानात्मक, कल्पनाषीलता और वैज्ञानिक, तकनीकी रूझान ऐसा हो, जिससे वे नया सोच सकें। उनका कहना है कि कोचिंग संस्थानों ने इन सब बातों को पाठ्यक्रम और प्रषिक्षण का हिस्सा बना लिया है, जिससे आईआईटी प्रवेष परीक्षा का उद्देष्य ही विफल हो जाता है। इससे जूझने के लिए प्रवेष परीक्षाओं में ऐसे बदलाव किए जाते हैं, ताकि वे कोचिंग के प्रषिक्षण से अलग छात्रों की मौलिकता को परख सकें, लेकिन कोचिंग संस्थान वाले तुरंत उसे अपनी प्रषिक्षण का हिससा बना लेते है।
कोचिंग संस्थान ऐसे कारखाने बन गए है, जो छात्रों को रगड-घिसकर प्रतियोगी परीक्षओं के लायक बनाते है। लेकिन दोश इन संस्थानोंका भी नहीं है, हमारी षिक्षा-व्यवस्था परीक्षाओं में ऊंचे अंक लाने पर आधारित है। कोचिंग संस्थानों का उद्देषय छात्रों को ज्यादा से ज्यादा अंक कमाने लायक बनाना भर है। षिक्षा प्रणाली छात्रों को ज्यादा रचनात्मक और जिज्ञासु बनाने के लिए नहीं है, वह एक गलाकाट स्पद्र्वा है, जिसमें छात्रों को किसी भी तरह सफल होना हैं। अगर 52 प्रतषत छात्र बिना कोचिंग के कामयाब हो सकते हैं, तो इस व्यवस्था में कुछ उममीद भी बाकी हैं।
            साभार-हिन्दुस्तान

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