विस्तार चाहता शिक्षा अधिकार कानून शीर्षक से लिखे अपने लेख में जगमोहन सिंह राजपूत ने 12वीं तक की शिक्षा को शिक्षा अधिकार कानून के दायरे में लाने की वकालत की है। अच्छा होता लेखक देश के सरकारी स्कूलों की बदहाल दशा सुधारने के लिए कुछ उपाय भी बताते, क्योंकि अभी भी गरीब और कमजोर तबके के बच्चे अपनी प्राथमिक शिक्षा के लिए इन्हीं स्कूलों पर निर्भर हैं। लिहाजा जब तक सरकारी स्कूलों की बदहाली नहीं दूर होगी देश के बड़े तबके को सही और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिलेगी। शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए मैं कुछ सुझाव देना चाहूंगा। जैसे-सभी स्कूलों के इंफ्रास्ट्रक्चर को सही किया जाए। प्रत्येक स्कूल में कक्षा के अनुरूप शिक्षक हों। अर्थात आठ कक्षा को पढ़ाने के लिए आठ टीचर और आठ कमरे होने चाहिए। अभी बहुत से ऐसे स्कूल हैं जहां एक टीचर पांच कक्षा को पढ़ा रहा है। मिड डे मील के अलावा उसका पैसा सीधे बच्चों के खातों में इस शर्त के साथ भेज दिया जाए कि विद्यालय में उनकी 80 प्रतिशत उपस्थिति रहेगी। साथ ही गणित, विज्ञान और भाषा कम से कम इन तीन विषयों के लिए प्राथमिक स्तर पर एकसमान प्रणाली पूरे देश में लागू की जानी चाहिए। सामाजिक विषय को प्रदेश स्तर पर एक अलग विषय के रूप में पढ़ाया जा सकता है। देखा जाए तो स्टेट बोर्ड, सीबीएसई बोर्ड और आइसीएसई बोर्ड के विषयों में एकरूपता नहीं है। एक देश में ही ऐसा क्यों है? इसके अलावा शिक्षकों से शिक्षा के अलावा अन्य किसी प्रकार के कार्य न लिए जाएं। अंत में यह भी देखा जाए कि वहां पढ़ाने वाले जो शिक्षक हैं उनके पास उसकी योग्यता है या नहीं।
साभार जागरण
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