सरकारी स्कूलों में प्राथमिक शिक्षा का स्तर दिनों दिन गिरता जा रहा है। मिडडेमील जैसी योजना भी छात्र-छात्रओं को रोक नहीं पा रही है। यह बताने के लिए काफी है। अधिकांश जनता पढ़ाई के प्रति जागरूक हैं। वह जानती है कि बिना पढ़ाई के बच्चा जीवन में कुछ हासिल नहीं पाएगा। अधिकांश सरकारी विद्यालयों में वही बच्चे पढ़ रहे हैं। जिनके अभिभावक प्रायवेट स्कूलों का खर्च उठाने में जरा भी सक्षम नहीं है। कुल मिलाकर सरकारी प्राथमिक शिक्षा का हाल बुरा है। अब समय सोचने का आ गया है। सरकार को इस ओर गंभीर होना पड़ेगा। सरकार को यह समझना पड़ेगा, कि प्राइवेट स्कूलों में अभिभावकों का शोषण बढ़ गया है। अधिकांश स्कूलों का मकसद केवल पैसा कमाने पर ही ध्यान केंद्रित हो गया है। इसलिए सरकारी स्कूलों की दशा सुधरनी चाहिए। समाचार पत्रों में अक्सर ऐसे समाचार छपते हैं। शिक्षक ने सरकारी विद्यालय को प्राइवेट विद्यालय के समतुल्य खड़ा कर दिया है। ऐसी आवश्यकता यहां पर भी है। अभिभावक की पीड़ा तब तक कम नहीं हो सकती है। रविंद्र सिंह, ऋषिकेशफिर लौटी कड़ाके की ठंडबीते दो दिनों से लगातार हो रही बारिश और ऊंचाई वाले क्षेत्रों में हो रही बर्फबारी से कड़ाके की ठंड लौट आई है। इसके साथ ही पहाड़ी क्षेत्रों में लोगों को परेशानी भी ङोलनी पड़ रही है। गढ़वाल क्षेत्र में ही कई सड़कें भारी बर्फबारी के चलते जगह-जगह बंद हो गई हैं। वहीं गांवों से लेकर बाजारों तक बत्ती गुल होने के चलते ग्रामीणों को परेशानी ङोलनी पड़ रही है। इसके अलावा पेयजल लाइनें जम जाने के कारण लोग बर्फ उबालकर पीने के लिए मजबूर हैं। वहीं मैदानी क्षेत्रों में भी कई स्थानों पर ओलावृष्टि होने से फसलों को काफी नुकसान पहुंचा है। राज्य सरकार को पेयजल व खाद्य पदार्थो की किल्लत से जूझ रहे क्षेत्रों में तत्काल राहत पहुंचानी चाहिए।
रीमा, देहरादून
साभार जागरण
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