ग्रामीण शिक्षा का सही विश्लेषण

ग्रामीण शिक्षा की खराब सेहत शीर्षक से प्रकाशित ऋषभ कुमार मिश्र का लेख शिक्षाविदों तथा नीति निर्माताओं की आंखें खोलने वाला है। सरकारी स्कूलों में नियुक्त शिक्षकों तथा शिक्षा मित्रों का अपने कर्तव्य के प्रति उपेक्षा भाव रखना शिक्षा की गिरती गुणवत्ता का कारण है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह आम राय बनती जा रही है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती, केवल मिड डे मील, किताब, ड्रेस और वजीफा ही मिलते हैं। सारा दिन विद्यालयों में बच्चे इधर-उधर दौड़-भाग करते रहते हैं। देर-सबेर आने वाले शिक्षक मिड डे मील का बंदोबस्त करके निश्चिंत हो जाते हैं। ग्राम प्रधान को केवल मिड डे मील के कमीशन से मतलब होता है। शिक्षक और प्रधान का यह गठजोड़ लाभ केंद्रित है। वहीं गरीब बेसहारा बच्चों के विकास के लिए ग्रामीण शिक्षा समिति भी कोई कोशिश नहीं करती। जब तक ध्येयनिष्ठ सरकारी शिक्षक एवं शिक्षा अधिकारी कमर नहीं कसेंगे और बच्चों के विकास के लिए समर्पित नहीं होंगे, शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार नहीं हो सकता।


राघवेंद्र त्रिपाठी, गोंडा


साभार जागरण

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