संस्थानों की विश्वसनीयता

देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई जिस तरह पिछले कुछ महीनों से नाटकीय दौर से गुजर रही है, वह बेहद शर्म की बात है। अगर सीबीआई अपने आंतरिक मसलों को ही समय पर नहीं सुलझा पा रही है, तो देश के गंभीर मुद्दों का जल्द निपटारा भला कैसे हो सकेगा? अब तो इसे केंद्र सरकार का पालतू तोता कहकर भी संबोधित किया जाने लगा है, जिस कारण आम जनता का इस पर से विश्वास कमजोर होता जा रहा है। माननीय उच्चतम न्यायालय को देशहित में ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए कि ऐसी संस्थाएं राजनीतिक असर से दूर रहें। जिस तरह हाल में अदालत ने राज्यों द्वारा डीजीपी को अपने ढंग से नियुक्त किए जाने पर रोक लगाई है, उसी तरह यहां भी स्वतंत्र नियुक्ति को बढ़ावा देकर वह निष्पक्ष जांच-प्रक्रिया को आगे बढ़ा सकती है। यदि ऐसा नहीं किया गया, तो इन संस्थानों का राजनीतिक दुरुपयोग बढ़ता जाएगा।


मोहम्मद आसिफ, दिल्ली


साभार हिन्दुस्तान

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