शिक्षा की वही तस्वीर

सालाना ‘असर’ रिपोर्ट जारी कर दी गई है। इस बार 640 जिलों में से 596 जिलों तक इसकी टीम पहुंची। नतीजा मिला-जुलाकर बीते वर्षों की तरह ही है। वही ढाक के तीन पात। स्कूलों में बच्चे बड़ी संख्या में दाखिला तो ले रहे हैं, मगर पठन-पाठन की गुणवत्ता लगातार गिर रही है। कक्षा पांच के बच्चे कक्षा दो के पाठ्य-पुस्तक नहीं पढ़ पाते, तो ज्यादातर बच्चे गणित में फिसड्डी साबित हो रहे हैं। ऐसे में, लगता यही है कि आज से 20 साल बाद भी यदि यह सर्वे किया जाएगा, तो नतीजा कमोबेश यही रहने वाला है। इसकी वजह यह भी है कि सरकार शिक्षा पर खर्च ही नहीं करना चाहती या इसके लिए उसके पास पैसे नहीं हैं। याद कीजिए, जब बिहार सरकार को सर्वोच्च न्यायालय ने यह आदेश दिया कि पारा शिक्षकों को समान काम के एवज में समान वेतन दिया जाए, तो राज्य सरकार ने अदालत को बताया था कि उसके पास इतने पैसे नहीं हैं कि समान कार्य के लिए समान वेतन बांट सके। ‘असरश् की इस रिपोर्ट में बिहार अब भी पिछड़ा राज्य है। जब बड़े राज्यों की यह दशा हो, तो हम भला कैसे विश्वगुरु बनने का सपना देख सकते हैं?


जंग बहादुर सिंह, जमशेदपुर


साभार हिन्दुस्तान

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