शिक्षा वह धन है जो व्यक्ति को भले-बुरे का ज्ञान करा कर उसे आदर्श नागरिक बनने की ओर उन्मुख करता है। समाज जितना शिक्षित होगा देश उतना ही सशक्त और समृद्ध बनेगा। इन सबके बीच उत्तराखण्ड में शिक्षा व्यवस्था की बात करें तो हाल बेहद चिंताजनक है। शहरों में निजी स्कूलों की मनमानी किसी से छिपी नहीं है। फीस बढ़ोत्तरी के साथ-साथ आए दिन लिए जा रहे तमाम तरह के शुल्क से अभिभावक परेशान है। इस सबके बावजूद यहां बच्चों की सुरक्षा भगवान भरोंसे चल रही है। सरकार हमेशा इन पर लगाम कसने की बात कहती है लेकिन ये सब बातें सिर्फ कुछ दिन अखबारों की सुर्खियां बनती है और बाद में सब कुछ पुराने ढर्रें पर आ जाता है। सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था तो ज्यादा ही चैपट है। एक तरफ शिक्षकों कमी ऊपर से आए दिन गुरुजनों की हड़ताल बताती है कि बच्चों का भविष्य किस दिशा में जा रहा है। सबसे ज्यादा बुरा हाल पहाड़ के गांवों का है क्योंकि यहां के सभी बच्चें सरकारी स्कूल में पढ़तें है। कहीं अंग्रेजी का शिक्षक नहीं तो कहीं विज्ञान का और कहीं-कहीं तो एक ही टीचर सभी विषयों का मास्टर बना है। स्कूलों की समय-समय पर समुचित माॅनटिरिंग न होने से जहां शिक्षक पूरे हैं वहां भी पढ़ाई का स्तर अच्छा नहीं है। आखिर कब तक ऐसा चलता रहेगा, कब सुधरेगी हमारी शिक्षा व्यवस्था। सरकार को समझना चाहिए कि बिना शिक्षा के बेहतर कल की कल्पना नहीं की जा सकती है। शिक्षा के बिना युवाओं को सही राह नहीं मिलेगी।
मुकेश, चमोली
साभार जागरण
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