नीति आयोग ने संघ लोकसेवा आयोग द्वारा संचालित भारतीय सिविल सेवा के अभ्यर्थियों के लिए अधिकतम आयु कम करने की सिफारिश कर एक पुरानी बहस को फिर से गरमा दिया है। आयोग ने कहा है कि सिविल सेवा में सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों के लिए वर्तमान अधिकतम आयु 32 से घटाकर वर्ष 2022-23 तक धीरे-धीरे 27 साल कर दी जाए। केंद्रीय एवं प्रादेशिक सिविल सेवाओं की उम्र पर हर कुछ अंतराल पर ऐसी सिफारिशें आतीं हैं। कई बार इन्हें लागू भी किया गया लेकिन विरोधों के कारण सरकारों को उसमें बदलाव करना पड़ा। हालांकि इससे पूर्व बासवान समिति भी आयु सीमा कम करने की संस्तुति कर चुकी है। नरेन्द्र मोदी सरकार ने सीसैट को क्वालीफाइंग करते हुए परीक्षा प्रणाली पर विचार कर अनुशंसा देने के लिए पूर्व शिक्षा सचिव बीएस बासवान की अध्यक्षता में समिति का गठन किया था। समिति की रिपोर्ट आने के बाद भी चर्चा चली कि सरकार उसे स्वीकार कर सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों की अधिकमत उम्र सीमा घटा सकती है, लेकिन विरोध के कारण उसे पीछे हटना पड़ा। देखना होगा नीति आयोग की सिफारिश पर सरकार क्या करती है।
नीति आयोग ने सिविल सेवा को लेकर काफी सुझाव दिए हैं। कहा है कि सिविल सेवाओं के लिए केवल एक ही परीक्षा ली जाए। सभी सेवाओं में बहाली के लिए एक केन्द्रीय टैलंट पूल बनान के सुझाव के साथ अभ्यर्थियों को उनकी क्षमतानुसार विभिन्न सेवाओं में लेने की बात है। सिविल सेवा में समानता के लिए इनकी संख्या में भी कमी का सुझाव है। इस वक्त केंद्र और राज्य स्तर पर 60 से ज्यादा अलग-अलग तरह की सिविल सेवाएं हैं। नौकरशाही में उच्च स्तर पर विशेषज्ञों की लेटरल एंट्री को भी बढ़ावा देने की सिफारिश है। इसके पीछे तर्क यह है कि इससे हर क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा विशेषज्ञों की सेवाएं मिल सकेंगी जिससे काम की गुणवत्ता बढ़ेगी। अफसरों को उनकी शिक्षा और स्किल के आधार पर विशेषज्ञ बनाने, जहां जरूरी हो लंबे समय के लिए अधिकारियों की निपुणता के आधार पर पोस्टिंग जैसी तमाम सिफारिशें हैं जिन पर गंभीरता से विचार होना ही चाहिए। लेकिन यह बात फिर भी समझ से परे हैं कि दो-चार वर्ष उम्र सीमा कम कर देने से कार्यक्षमता और गुणवत्ता में क्या अंतर आ जाएगा? वैसे भी आप अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति और अति पिछड़े वर्ग की उम्र सीमा तो घटा नहीं रहे जो पहले से ज्यादा है। अगर सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों की उम्र 27 वर्ष कर दी जाए तो आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों से इनके बीच 10 वर्ष से ज्यादा का अंतर हो जाएगा। उम्र सीमा घटाने से कई और भी दिक्कतें पेश आएंगी।
राजीव गांधी जब प्रधानमंत्री बने तब सिविल सेवा मेें सुधार बड़ा एजेंडा था। उनके सलाहकारों ने उम्र सीमा 28 से घटाकर 26 वर्ष करने का सुझाव दे दिया। नतीजा यह हुआ कि लाखों की संख्या में तैयारी कर रहे छात्र परीक्षा से वंचित हो गए। देश भर में हंगामा हुआ, जिसके बाद सरकार ने उम्र सीमा तो नहीं घटाई, लेकिन तय किया कि अगले तीन वर्ष तक जिनकी उम्र सीमा 28 के अंदर है वे परीक्षा में शामिल हो सकेंगे। छात्रों ने परीक्षाएं तो दीं, किंतु विरोध भी जारी रहा। वस्तुतरू उस निर्णय के कारण परीक्षा में बैठना हजारों छात्रों के लिए मजबूरी हो गई, क्योंकि उसके बाद वे निर्धारित आयु सीमा पार कर जाते। विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने न केवल उम्र सीमा फिर से 28 वर्ष की बल्कि यह भी आदेश जारी किया कि जो लोग राजीव गांधी सरकार के निर्णय के कारण परीक्षा से वंचित रह गए उनको एक अवसर दिया जाए। यही हुआ। हालांकि ऐसे उम्मीदवारों को लाभ शायद ही हुआ हो, क्योंकि वो सिविल सेवा की तैयारी से बाहर हो चुके थे। माना जाता है कि राजीव गांधी की पराजय के कई कारणों में यह भी एक बड़ा कारक था। यानी आयुसीमा कम करने का मामला राजनीतिक रुप से भी जोखिम भरा है। अनुसुचित जाति अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण कानून पर उच्चतम न्यायालय के निर्णय को संसद द्वारा पलट देने के कारण एक बड़े वर्ग में भाजपा के प्रति वैसे भी नाराजगी है। यह निर्णय आत्मघाती हो सकता है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
वरिष्ठ पत्रकार
साभार हिन्दुस्तान
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