मानव संसाधन विकास मंत्रालय की तरफ से बस्ते का बोझ कम करने के लिए उठाए गए कदमों की सराहना की जानी चाहिए। इसमें कोई दो राय नहीं कि बच्चों की कमर स्कूली बस्ते के भारी-भरकम बोझ के कारण टेढ़ी हो जाती है। जब बच्चे स्कूल जाते हैं, तो उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि वे स्कूल नहीं, बल्कि बोझ लेकर पहाड़ के लिए रवाना हो रहे हैं। इससे अभिभावक भी परेशान थे। आखिरकार मोदी सरकार ने उनकी पीड़ा को समझा और सराहनीय फैसला लिया। लेकिन समस्या अभी टली नहीं है, क्योंकि हमारी शिक्षा-पद्धति अब भी इतनी बेहतर नहीं है कि सूचना-प्रौद्योगिकी की इस रफ्तार भरी दुनिया में वह विदेशी शिक्षा-पद्धति का मुकाबला कर सके। कई देशों में बच्चे बैग नहीं, बल्कि तकनीकी उपकरण लेकर जाते हैं, जो उनके बोझ को कम करने के साथ-साथ बचपन से ही उन्हें प्रायोगिक रूप से तकनीक का आभास कराते हैं। अपने यहां भी सरकार को समझना चाहिए कि कार्य में कुशलता सिर्फ किताबी ज्ञान से नहीं आती, प्रत्यक्ष अनुभव ही बुद्धि और विकास का आधार है। सरकारों को इस पर काम करना चाहिए।
पिंटू सक्सेना, लखनऊ
साभार हिन्दुस्तान
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