बच्चों की ट्यूशन अब कोई अपवाद नहीं, नियम है

कैंब्रिज इंटरनेशनल ग्लोबल एजुकेशन सेंसस ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि भारत में 74 प्रतिशत बच्चे स्कूल के बाद गणित का ट्यूशन लेते हैं। ट्यूशन लेने वाले बच्चों का यह प्रतिशत दुनिया भर में सबसे ज्यादा है। 72 प्रतिशत बच्चे स्कूल की अन्य गतिविधियों में भी शामिल हैं। लेकिन बच्चों की भागीदारी खेलों में कम है। इस अध्ययन में भारत के अलावा अमेरिका, मलेशिया, अजेंर्टीना, दक्षिण अफ्रीका, पाकिस्तान समेत दस देशों को शामिल किया गया था। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अपने देश में 66 प्रतिशत माता-पिता भी बच्चों की स्कूल में होने वाली गतिविधियों बारे में लगातार पूछते रहते हैं। इनमें से पचास प्रतिशत स्कूल में होने वाले बहुत से आयोजनों में भी भाग लेते हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारतीय माता-पिता अपने बच्चों की पढ़ाई में अन्य बहुत से समाज के मुकाबले कहीं अधिक दिलचस्पी लेते हैं।


इस सर्वे में निजी स्कूलों के साथ-साथ सीबीएसई तथा राज्यों के शिक्षा बोर्ड्स से जुड़े बहुत से स्कूलों को भी सम्मिलित किया गया था। रिपोर्ट के अनुसार, बच्चों की पहली पसंद अब भी डॉक्टर या इंजीनियर बनना है। इसी रिपोर्ट में बताया गया है कि 36.7 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं, जो सप्ताह में सिर्फ एक घंटा ही खेलते हैं। सिर्फ तीन प्रतिशत बच्चे ऐसे पाए गए, जो सप्ताह में छह घंटे से अधिक खेलते हैं, और 26.4 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं, जो बिल्कुल नहीं खेलते। ये नतीजे भारत में 2,400 अध्यापकों और 4,800 बच्चों से बातचीत के आधार पर निकाले गए हैं।


रिपोर्ट में बच्चों के कम खेलने के जिक्र से उनके लिए काम करने वाले संगठनों, डॉक्टरों और उन विशेषज्ञों की बातें भी प्रमाणित होती हैं कि बच्चे शारीरिक गतिविधि नहीं करते, वे टीवी़, मोबाइल या इंटरेनट में व्यस्त रहते हैं, भाग-दौड़ के खेल कम खेलते हैं, इसलिए उनका मोटापा बढ़ता जा रहा है। वे तरह-तरह की गंभीर बीमारियों का शिकार भी हो रहे हैं। न खेलने और पौष्टिक खाने के मुकाबले जंक फूड का अधिक से अधिक प्रयोग भी बच्चों के लिए बेहद हानिकारक है। स्वादिष्ट होने के नाम पर बच्चों के बीच इस तरह की खाद्य सामग्री का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। हालांकि बहुत से स्कूलों में इस तरह के खाद्य पदार्थों के बेचने पर रोक लगाने की खबरें भी पिछले दिनों आई थीं। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के बारे में भी अक्सर ऐसी ही चिंताएं प्रकट की जाती हैं कि उन पर अच्छे नंबर लाने का दवाब अध्यापकों, माता-पिता और दोस्तों की देखादेखी भी इतना अधिक रहता है कि खेलने-कूदने को समय की बर्बादी मानने लगते हैं।


 इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि छात्र-छात्राएं अच्छा करें, इसके लिए अध्यापक भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते। वे चाहते हैं कि उनके विद्यार्थियों के परीक्षा में नंबर अच्छे आएं। बच्चों के अच्छे नंबर अध्यापक के अच्छे होने का भी प्रमाण माना जाता है। छात्र कक्षा में अच्छा करें, दुनिया भर के अध्यापक इस कारण से बहुत दवाब में रहते हैं, मगर भारतीय अध्यापकों में मात्र 33 प्रतिशत इस दवाब को महसूस करते हैं। यह भी सचाई है कि अगर स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद बच्चों के अच्छे नंबर न आएं, तो उन्हें अपने मनपसंद कोर्स या कॉलेज में दाखिला नहीं मिलता। एक-एक नंबर कम होने के कारण बहुत से बच्चे पीछे रह जाते हैं। जैसा कि इस रिपोर्ट में अध्यापकों ने माना कि बच्चों के अच्छे नंबर ही उनके अच्छे अध्यापक होने का प्रमाण हैं। तकरीबन यही मान्यता बच्चों के अभिभावकों की होती है। इसीलिए अंत में अध्यापक से पूछा जाता है कि बच्चे के इतने कम नंबर कैसे आए? क्या आप लोग उन पर ध्यान नहीं देते? और अब जब इतने कम नंबर आए हैं इसे कहां एडमिशन मिलेगा? जरूर पढ़ने के मुकाबले खेलने में ज्यादा वक्त गंवाया होगा। जब परिवार के बड़े लोगों और अभिभावकों से ही बच्चे ये बातें सुनें कि पढ़ने के मुकाबले खेलने में ज्यादा वक्त गंवाया हो, तो भला वे क्यों खेलें? एक सवाल यह भी है कि जब दुनिया भर में सबसे अधिक ध्यान हमारे अध्यापक बच्चों की पढ़ाई पर देते हैं, तो उन्हें अलग से ट्यूशन पढ़ने की जरूरत क्यों पड़ती है?


 

(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

लेखक क्षमा शर्मा (वरिष्ठ पत्रकार)

साभार हिन्दुस्तान

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