सुरक्षित भविष्य का साधन बने शिक्षा शीर्षक लेख तहत ऋषभ कुमार मिश्र ने शिक्षा का मकसद विधार्थियों को आदर्श नागरिक भी बनाना बताया। स्वामी विवेकानंद ऐसी शिक्षा चाहते थे जिससे बालक का सर्वांगीण विकास हो सके। बालक की शिक्षा का उद्देश्य उसको आत्मनिर्भर बनाकर अपने पैरों पर खड़ा करना था न कि केवल नौकरी करना, लेकिन अफसोस न तो आज ऐसी शिक्षा देने वाली होंगे और न ही ग्रहण करने वाले। शिक्षा का मतलब यह नहीं हैं कि किताबों का ज्ञान, बल्कि नैतिकता और आसपास की अच्छी बातों का ज्ञान होने के साथ-साथ इंसानियत का ज्ञान होना भी जरूरी है। असली पढ़ा लिखा इंसान वही समझा जाता है जिसके अंदर नैतिकता की भावना हो, इंसानियत हो, समाज में अच्छी शिक्षा का प्रसार करें। आज घोर प्रतिस्पर्धा के युग में छात्र डिग्री हासिल करने को ही अपना मकसद मानते है। माना कि प्रतियोगिता के समय में किताबी कीड़ा बनना समय की मांग है, लेकिन सर्वांगीण विकास के बिना हर शिक्षा अधूरी है। आर्दश शिक्षा के अभाव में ही आज भारत में अनैतिक कामों, शिष्टाचार की कमी और भ्रष्टाचार का जाल बिछ चुका है। आज शिक्षा एक व्यापार बन गया है, छात्र जैसे तैसे डिग्री हासिल करके नौकरी पाना चाहते है।
राजेश कुमार चैहान, जालंधर
साभार जागरण।
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