सरकारी स्कूलों में प्राथमिक शिक्षा का स्तर दिनों दिन गिरता जा रहा है। मिड-डे मील जैसी योजना भी छात्र-छात्रओं को नहीं रोक पा रही है। यह बताने के लिए काफी है सरकारी स्कूलों के प्रति लोगों की सोच क्या है। जनता पढ़ाई के प्रति जागरूक हैं। वह जानती है कि बिना पढ़ाई के जीवन में कुछ नहीं किया जा सकता है। अधिकांश सरकारी विद्यालयों में वही बच्चे पढ़ रहे हैं। जिनके अभिभावक प्राइवेट स्कूलों का खर्च उठाने में जरा भी सक्षम नहीं हैं। वहीं प्राइवेट स्कूल संचालक सरकार की इसी कमी का फायदा उठा रहे हैं। वह अभिभावकों से बच्चों को पढ़ाने के एवज में मोटी फीस वसूल रहे हैं। विरोध करने पर सरकारी स्कूल में भेजने के लिए कहते हैं। वहीं सरकारी स्कूलों की हालत किसी से छिपी नहीं हैं। आए दिन जर्जर भवनों के कारण सरकारी स्कूलों में छुट्टी कर दी जाती है। सरकार सबकुछ जानकर भी अनजान बनी हुई है। सरकार को बच्चों के भविष्य से कोई लेना-देना नहीं रह गया है। जिससे अभिभावकों पर आर्थिक बोझ बढ़ रहा है। सरकार को जल्द इस ओर गंभीरता से कदम उठाने होंगे। जिससे गरीब लोगों को इसका लाभ मिल सके और वह अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ा सके।
अमित शर्मा, देहरादून
साभार जागरण
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