इस बात पर सहज ही यकीन नहीं होता कि चीन और खाडी के देशों के बहुत से राजनायिक और रक्षा विशेषज्ञ इस समय पाकिस्तान में हिंदी सीख रहे हैं। इसी के साथ एक और सच यह भी है कि खुद पाकिस्तान के भीतर हिंदी को जानने समझने सीखने की प्यास तेजी से बढ़ रही है। वैसे देश के बंटवारे से पहले समूचे पाकिस्तान के पंजाब से लेकर सिंध में हिंदी पढ़ाई जाती थी। लाहौर तो हिंदी का गढ़ ही था। जहां हिंदी के कई बड़े प्रकाशन भी थे। जैसे राजपाल एंड सन्स। बाद में हिंदी को भी बंटवारे का खामियाजा भुगतना पड़ा। पर अब इस्लामाबाद की नेशनल यूनिवर्सिटी आफ माॅडर्न लैंग्वेज यानि एनयूएमएल में हिंदी ने अपनी जगह बनाई है। इसके अलावा लाहौर की पंजाब यूनिवर्सिटी में भी 1983 से हिंदी विभाग सक्रिय है। एनयूएमएल के हिंदी विभाग में पांच अध्यापक हैं, जहंा हिंदी में डिप्लोमा कोर्स से लेकर पीएचडी तक करने की सुविधा है।
कुछ साल पहले तक दिल्ली में पाकिस्तान के हाई कमीश्नर रहे रियाज खोखर ने बताया था कि हिंदी पड़ोसी मुल्क भारत की अहम भाषा है। इसलिए हम इसकी अनदेखी नहीं कर सकते। हालांकि वह इस सवाल का उत्तर नहीं दे पाए थे कि कराची यूनिवर्सिटी का हिंदी विभाग क्यों बंद हो गया, जबकि कराची में उत्तर प्रदेश , दिल्ली , बिहार वगैरह इलाकों से जाकर बसे लोगों की भारी तादाद है। कराची और सिंध क्षेत्र में ही पाकिस्तान के हिन्दुओं की ठीक ठाक आबादी भी है। इनमें हिन्दू धर्म ग्रंथों को हिंदी में पढ़ने की लालसा रहती है। जाहिर है समूचे सिंध और कराची में हिन्दी अध्यापन की व्यवस्था न होने से तमाम लोगों को कठिनाई होती होगी।
एनयूएमएल में हिंदी विभाग की प्रमुख नसीमा खातून ने नेपाल की त्रिभुवन यूनिवर्सिटी से हिंदी साहित्य में पीएचडी की है। वह आगरा यूनिवर्सिटी में भी पढ़ी हैं। इस विभाग में शाहिना जफर भी हैं जो मेरठ यूनिवर्सिटी की छात्रा रही हैं। नसीम रियाज हैं जो पटना यूनिवर्सिटी से एमए हैं। जुबैदा हसन भी इधर कांट्रेक्ट पर पढ़ा रही हैं, जो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की छात्रा रही हैं। एक तरह से यह भी कह सकते हैं कि पाकिस्तान में हिंदी निकाह के बाद वहां गई भारत की महिलाएं ही पढ़ा रही हैं।
बहरहाल , भाषायी और सांस्कृतिक समानताओं के कारण पाकिस्तान में हिंदी का प्रभाव हमेशा से रहा है। हिंदी फिल्मों और भारतीय टीवी सिरियलों के कारण दर्जनों ंिहंदी शब्द आम पाकिस्तानी की आम बोलचाल में शामिल हो गए हैं। अब पाकिस्तानियों की जुबान से आप विवाद , अटूट विश्वास, आशीर्वाद, चर्चा, पत्नी, शांति जैसे शब्द अक्सर सुन सकते हैं। यह वह भाषा है, जिसके कारण बाकि दुनिया में रहने वाले भारतीय और पाकिस्तानी आसानी से आपस में संवाद कर लेते हैं। यह अलग बात हैं कि दोनों देशों की सरकारों के संवाद की भाषा अक्सर यह नहीं होती।
विवेक शुक्ला
वरिष्ठ पत्रकार
साभार- दैनिक हिन्दुस्तान
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