उच्च शिक्षा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. धन सिंह रावत ने कुछ दिन पूर्व अशासकीय महाविद्यालयों की शैक्षिक व्यवस्था में सुधार नहीं आने पर उनका अधिग्रहण करने की बात कही थी। उच्च शिक्षा का शैक्षिक स्तर सुधारने के लिए कड़े रुख अख्तियार करना नितांत आवश्यक है, लेकिन पहले उच्च शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत को शासकीय महाविद्यालयों में फैली अव्यवस्थाओं पर भी ध्यान देने की जरूरत है। पर्वतीय व मैदानी क्षेत्रों में कोई भी ऐसा महाविद्यालय नहीं है जो शिक्षकों की कमी से नहीं जूझ रहा है। आए दिन छात्र शिक्षकों की मांग को लेकर सड़कों पर उतरकर आंदोलन कर रहे हैं। बावजूद इसके सिस्टम शिक्षकों की नियुक्ति को लेकर जरा भी गंभीर नजर नहीं आ रहा है। जिससे प्रदेश में उच्च शिक्षा का स्तर लगातार गिरता जा रहा है और शासन के नुमाइंदे रोज शिक्षकों की नियुक्ति कराने की बात कर रहे हैं। वास्तविक रूप से उच्च शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए सबसे पहले शासकीय और अशासकीय महाविद्यालयों में शिक्षकों के रिक्त पदों पर शीघ्र नियुक्ति होनी चाहिए। ताकि युवाओं को महंगे दामों पर उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए बाहरी राज्यों का रुख न करना पड़े। देखने में आ रहा है कि उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए राज्य के अधिकांश युवा दिल्ली सहित अन्य राज्यों का रुख कर रहे हैं। इन हालातों में राज्य का कोई भी ऐसा महाविद्यालय व विश्वविद्यालय नहीं जो छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए आकर्षित कर रहा हो। नित नए खुलने वाले निजी महाविद्यालय और विश्वविद्यालय मात्र भारी भरकम फीस वसूल रहे हैं। उनकी शैक्षिक गुणवत्ता का स्तर कितना बेहतर है। उसके परिणाम सभी के समक्ष हैं।
मनोज राणा, कनखल, हरिद्वार
साभार जागरण
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