उत्तराखंड राज्य की अस्थायी राजधानी देहरादून जो देशभर में अपनी स्कूली शिक्षा के लिए बेहद मशहूर है। यहां शिक्षा आज केवल एक व्यापार बन चुकी है। हर साल मनमानी फीस व प्रायौगिक शिक्षा के नाम पर अभिभावकों से हजारों रुपये हड़प लिए जाते हैं। बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल सके, यह सोचकर बिना सवाल किए अभिभावक भी मनमानी फीस दे देते हैं। आज देहरादून के नामी स्कूल भी अपनी शिक्षा का स्तर गिराकर केवल व्यापार कर रहे हैं। प्रयोगशाला की पूरी फीस लेने के बावजूद भी बच्चों को वहां कुछ नहीं सिखाया जाता है। बस वषों से परंपरागत तरीकों से किताबों से पढ़ाया जा रहा है। जहां पाठ बिना समझाए ही प्रश्न-उत्तर कराकर पाठ्यक्रम को खत्म करने की होड़ लगी रहती है। जिसके कारण कुछ समय बाद बच्चों का पढ़ाई से मन उठने लगता है। बड़े-बड़े नामी स्कूलों ने परंपरागत तरीकों को तोड़ते हुए अपने स्कूल में स्मार्ट क्लास का आगमन किया है। स्मार्ट क्लास के नाम पर अलग से पैसे लूटे तो जा रहे हैं, लेकिन स्मार्ट क्लास ऐसी जहां बच्चों को किताबों के साथ मिलने वाली ट्यूटोरियल लर्निंग या काटरून दिखा रहे हैं। मनमानी फीस देने का परिणाम यह निकल रहा है कि उनके बच्चों को शिक्षा के नाम पर अब केवल एक प्रोडक्ट की भांति देखा जाता है। कमरतोड़ मेहनत करने के बावजूद भी अगर बच्चे अच्छी शिक्षा ग्रहण नहीं कर पा रहे हैं तो क्या फायदा ऐसी मनमानी फीस देने का। शिक्षा मंत्री को भी इस विषय को गंभीरता से लेते हुए फीस का एक मापदंड निश्चय करना होगा। साथ ही सरकार को एनसीईआरटी की किताबों की गुणवत्ता को सुधार कर स्कूल में सख्ती से लागू करवाना होगा।
मीनाक्षी ठाकुर, देहरादून
साभार जागरण
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