सर्वव्यापी प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में शानदार प्रगति के बावजूद निचली जमात के बच्चों के पढ़ने की कमजोर क्षमता बांग्लादेश की कामयाबी को अब भी पलीता लगा रही है। ‘वर्ल्ड विजन बांग्लादेशश् के एक अध्ययन के मुताबिक, तीसरी जमात के 54 फीसदी बच्चे यह नहीं समझते कि वे क्या पढ़ रहे हैं, जबकि 33 प्रतिशत बच्चे 30 सेकंड में पांच शब्द नहीं पढ़ सकते। एक शागिर्द की जिंदगी में पढ़ने की जो अहमियत होती है, वह इस आंकडे को वाकई चिंताजनक बनाती है।
पढ़ने का इल्म इस वजह से अहम है कि ‘अगर कोई बच्चा पढ़ नहीं सकता, तो वह सीख भी नहीं सकता।श् यह उनके अकादमिक भविष्य पर गहरा असर डालता है। इसके अलावा, उनकी भावनात्मक और सामाजिक जिंदगी भी इससे काफी प्रभावित होती है। शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि पढ़ने की यह कमजोर क्षमता तीसरे दर्जे के बाद और ज्यादा तकलीफदेह हो सकती है, क्योंकि उसके बाद की कक्षाओं में शिक्षक इस पर बच्चों को और भी कम वक्त देते हैं। इसके अलावा, ऊपर की कक्षाओं में ज्ञान के नए-नए विषय और पाठ्यक्रम भी शुरू हो जाते हैं। जाहिर सी बात है कि जो पढ़ने में कमजोर होते हैं, उनके बीच में ही स्कूली पढ़ाई छोड़ने का जोखिम ज्यादा होता है। यह सही है कि बांग्लादेश में प्राइमरी शिक्षा निरूशुल्क है और हुकूमत मुफ्त में बच्चों को किताबें मुहैया कराती है, मगर हकीकत यह है कि प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर पढ़ाई बीच में ही छोड़ने वाले बच्चों की दर काफी ऊंची है। इसलिए बच्चों के पढ़ने की क्षमता में कमी न सिर्फ माता-पिता, शिक्षकों और स्कूलों की नाकामयाबी है, बल्कि यह सरकार की भी नाकामी है, क्योंकि उसका जोर ज्यादा से ज्यादा बच्चों के दाखिले पर है, न कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर। यही नहीं, बच्चों के भविष्य पर इस स्थिति के असर या फिर बीच में ही पढ़ाई छोड़ने की दर पर शायद ही कभी चर्चा होती है। हमारा मानना है कि हुकूमत को इस पर ज्यादा संजीदगी से गौर करना चाहिए और एक ऐसी नीति बनानी चाहिए, जो पढ़ने का हुनर निखार सके।
द डेली स्टार, बांग्लादेश
साभार हिन्दुस्तान
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