सरकारी स्कूलों में शिक्षा की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। कई स्कूलों में शिक्षक नहीं हैं तो छात्र संख्या शून्य होने के चलते कई विद्यालयों पर ताला लटका चुका है। वहीं विद्यालय भवनों की स्थिति भी कुछ ठीक नहीं कही जा सकती है। जर्जर विद्यालय भवनों के चलते छात्र खतरे के साये में शिक्षा लेने को मजबूर हैं। पहाड़ी राज्यों में मुसीबतें दोगुनी हैं, जहां संसाधनों के साथ-साथ भूगोल भी चुनौती देता नजर आता है। कई विद्यालयों के लिए सड़क न होने के चलते शिक्षक वहां जाना नहीं चाहते। ऐसी स्थिति में या तो शिक्षक कहीं सुगम में तैनाती करवा लेता है या फिर विद्यालय से अक्सर गायब रहता है और इसका खामियाजा छात्रों को भुगतना पड़ता है। इस दिशा में विभाग को काम करने की जरूरत है ताकि प्रदेश में शिक्षा के स्तर में सुधार किया जा सके। वहीं सरकारी शिक्षा पर तो विशेष ध्यान देने की जरूरत है। विशेषकर दुर्गम क्षेत्रों में शिक्षा पर सबसे अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए, तभी उक्त क्षेत्रों से पलायन रुक पाएगा और पहाड़ को आबाद किया जा सकेगा। बिना शिक्षा के तो अच्छे भविष्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। जहां एक ओर सरकार सर्व शिक्षा अभियान चला रही है, वहीं शिक्षा की ऐसी दुर्दशा देख सरकार के शिक्षा के प्रति किए जा रहे सारे दावे झूठे ही नजर आते हैं। सरकार को सिर्फ दावे नहीं करने चाहिए, बल्कि उनके क्रियान्वयन के लिए धरातल पर भी कार्य करने की जरूरत है। यदि बच्चों को बेहतर शिक्षा ही नहीं मिल पाएगी तो वह भविष्य में जाकर कैसे अपना व देश का विषय संवार पाएंगे। वैसे भी आने वाला समय काफी प्रतियोगिताओं से भरा है। ऐसे में शिक्षा की लाठी ही इन प्रतियोगिताओं से लड़ने का सहारा बनेगी। इसके लिए विशेष प्रयास किए जाने की जल्द से जल्द जरूरत है।
निधि जैन, देहरादून
साभार जागरण
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