सरकारी स्कूलों के हक में

केरल की स्टोरी पढ़ी कि अचानक सरकारी स्कूलों में दो लाख अधिक एडमिशन हो गए। गांव के गांव ने निर्णय ले लिया कि सरकारी स्कूल में ही पढेंगे। प्राइवेट स्कूलों से चैथी कक्षा तक के बच्चों ने एकमुश्त सरकारी स्कूलों में बदली करा ली। अचानक जैसे सरकारी स्कूलों में जोश आ गया। अब ऐसे विद्यार्थियों की जमात थी, जो मजबूरीवश नहीं, बल्कि बेहतरी के लिए सरकारी स्कूल आए। वहीं पंजाब और हरियाणा की खबर पढ़ी, जो उन्नत राज्य होकर भी सरकारी स्कूलों के प्रदर्शन में कमजोर रहे। पंजाब के कुछ स्कूलों से तो एक भी बच्चे ने मैट्रिक की परीक्षा पास नहीं की। हरियाणा में पचास प्रतिशत से कम का परिणाम अच्छा है। वहां केरल के उलट सरकारी से प्राइवेट की ओर प्रयाण है। तो समस्या स्कूल से अधिक ‘एडमिशन ट्रेंडश् की है। जिधर भीड़ जाएगी, माहौल बनेगा, वहां नतीजे बेहतर होंगे, सुविधाएं भी आएंगी। जहां भीड़ ही नहीं, वहां सरकार का मनोबल टूट जाता है। दिल्ली की बात नहीं करूंगा। वहां स्कूल पहले भी ठीक थे। हां! अगर बाकी राज्यों में सब समूह बनाकर निर्णय लें कि एक जमात मेें 50 बच्चे सरकारी स्कूल की ओर घरवापसी कर लें, तो वही ‘सुपर-50श् बन जाएगा। जो फीस का पैसा बचे, उससे आईपैड खरीद दीजिए, और बढ़िया किताबें।


निजी स्कूलों के 50 बच्चे सरकारी स्कूल की ओर घरवापसी कर लें, तो वही ‘सुपर-50 बन जाएगा।


प्रवीण झा की फेसबुक वॉल से


साभार हिन्दुस्तान



 

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