डॉ. मनमोहन वैद्य ने अपने लेख ‘जड़ों से कमजोर जुड़ाव के दुष्परिणाम’ में जिस अभारतीयकरण की बात की है उसकी मूल वजह अपनी जड़ों से कटी भारतीय शिक्षा ही है। मैकाले ने 1835 में ब्रिटिश शासन की जड़ें मजबूत करने के लिए अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा का जो सूत्र दिया था, आजाद भारत की कांग्रेसी सत्ता ने उसे अपने शासन की जड़ें मजबूत करने के लिए यथावत रूप से लागू कर दिया। स्वतंत्र भारत में वैज्ञानिक प्रगति के नाम पर पाश्चात्य अवधारणाओं को आत्मसात कराने के लिए जिस अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा को वरीयता दी गई, उससे भारत की भावी पीढ़ी के आचार-विचार में पनपने वाली अंग्रेजियत अभारतीयकरण की ओर बढ़ता पहला कदम था। जिसे अभारतीयता के समर्थक वामपंथी बुद्धिजीवियों ने आगे बढ़ाने का काम किया। अंग्रेजी शिक्षा के व्यामोह में जकड़े आधुनिक भारतीय समाज ने भारतीय संस्कृति से सुवासित हिंदी माध्यम के विद्यालयों से दूरी बनाए रखी। अच्छी शिक्षा के बावजूद जब ये विद्यालय शिक्षा में व्याप्त अंग्रेजियत के संजाल को तोड़ने में विफल रहे तो भारतीयता से समन्वित अंग्रेजियत को अपनाने का निर्णय लिया गया। वैसे भी अब वैश्वीकरण के युग में अंग्रेजी भाषा की स्वीकार्यता के साथ भारतीय भाषा और संस्कृति से समन्वित ऐसी शिक्षा नीति की जरूरत है, जो भारतीय शिक्षा में घुलने वाले अभारतीयकरण के विषैलेपन को दूर करने में समर्थ हो सके।
साभार जागरण
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