उत्तराखंड हिमालयी राज्यों में फैकल्टियों के अभाव के बावजूद भी उच्च शिक्षा की श्रेणी में सर्वोच्च पायदान पर है। यहां महाविद्यालयों में हर जनपद में प्रत्येक राजकीय महाविद्यालयों से लेकर विश्वविद्यालयों में भवन से लेकर प्राध्यापकों की कमी है। लेकिन संसाधनों के अभाव में बेहतर परिणाम निकलना कहीं न कहीं यहां के छात्रों की बौद्धिक क्षमता का परिचायक है। यहां की विषम भौगोलिक परिस्थितियां होने के चलते छात्र कड़ा संघर्ष करते हैं। बावजूद इसके सरकार यहां प्राथमिक स्तर से लेकर उच्च शिक्षा पर जरा भी गौर नहीं कर रही है। यहां के विद्यालयों और महाविद्यालयों की दुर्दशा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्राध्यापकों, भवन, प्रयोगशाला, पुस्तकालय के छात्र-छात्रओं को सड़कों पर उतरकर आंदोलन करना पड़ रहा है। यहां के किसी भी महाविद्यालय में छात्रों के अनुरूप फैकल्टियां नहीं है। कई स्थानों पर छात्रों की रुचि के अनुरूप विषयों को नहीं पढ़ाया जाता। जिस वजह से इन छात्रों को या तो घर से दूर अन्यत्र स्थानों पर दाखिला लेना पड़ता अथवा बीच में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ती है। किसी भी बच्चे का बीच में पढ़ाई छोड़ना किसी भी समाज और राष्ट्र के लिए शुभ संकेत नहीं है। इसलिए शासन-प्रशासन और उच्च शिक्षा मंत्रलय इस पर गंभीरता दिखानी चाहिए। प्रदेश के तमाम महाविद्यालयों में जो कमियां हैं प्राथमिकता के आधार पर उनका निस्तारण किया जाना चाहिए। यहां गौर करना चाहिए कि उच्च शिक्षा के बल पर ही आज युवाओं को रोजगार मुहैया हो पाता है। जितनी अच्छी युवाओं की उच्च शिक्षा होगी, उतना अच्छा रोजगार उन्हें मिलेगा, लेकिन देखा जाता है कि युवाओं को उस स्तर की उच्च शिक्षा नहीं दी जाती है, जिससे उन्हें आसानी से रोजगार उपलब्ध हो सके।
वासुदेव मुंडेपी, हरिद्वार, कनखल
साभार जागरण
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