स्कूलों में सत्र 1 अप्रैल से शुरू हो चुका है और अभी तक सरकारी किताबें स्कूलों तक नहीं पहुंची हैं, जबकि अगले ही महीने इन स्कूलों में अर्द्धवार्षिक परीक्षा शुरू होने वाली है। सरकारी विभागों की इस लेटलतीफी पर किसी का ध्यान नहीं है। जरा सोचिए, बिना किताबों के ये बच्चे पढ़ेंगे कैसे और किस तरह परीक्षा देंगे? मुश्किल यह है कि बाहर की दुकानों पर भी किताबें नहीं मिल रहीं। बच्चों के भविष्य के साथ हो रहे इस खिलवाड़ की जवाबदेही आखिर किसी होनी चाहिए? यह भी एक अजूबी घटना ही मानी जाएगी कि बच्चे बिना किताब पढ़े परीक्षा दें। इस पत्र के माध्यम से मैं सरकार और संबंधित विभाग का ध्यान इस मसले की ओर खींचना चाहता हूं। सरकारी स्कूलों में किताबों की व्यवस्था जल्द से जल्द होनी चाहिए।
मिर्जा मुराद बेग, आजमगढ़.
साभार जागरण
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