सरकारी विद्यालयों की हालत

केंद्र और राज्य सरकार भले ही सरकारी विद्यालयों में शैक्षिक गुणवत्ता बढ़ाने की बात कर रही हो। लेकिन धरातलीय स्थिति इसके बिल्कुल उलट है। सरकारी विद्यालयों का पढ़ाई का स्तर और वहां अव्यवस्था से आजीज आ चुके अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में महंगी फीस में पढ़ाने को विवश हैं। इससे अभिभावकों पर आर्थिक बोझ बढ़ने के साथ-साथ मानसिक शोषण भी हो रहा है। पर्वतीय क्षेत्रों के अधिकांश विद्यालयों में देखने में आ रहा है कि नौनिहाल टपकती छतों और शिक्षकों के अभाव में सरकारी विद्यालयों में जाने को विवश हैं। आए दिन समाचार पत्रों में खबरें प्रकाशित हो रही हैं। बावजूद इसके शासन-प्रशासन इस ओर ध्यान देने को तैयार नहीं है। शिक्षा विभाग भी संबंधित क्षतिग्रस्त विद्यालयों के लिए बजट की मांग को लेकर शासन को पत्र भेजकर अपने कार्यो की इतिश्री कर रहा है। प्रदेश में हजारों की संख्या में ऐसे विद्यालय हैं जो थोड़ी सी बारिश में टपकने लगते हैं। साथ ही इनके भरभराकर नीचे गिरने का भी खतरा बना रहता है। इतना ही नहीं कई विद्यालयों में पेयजल और शौचालय तक की व्यवस्था नहीं है। जिन स्थानों पर है तो वहां अध्यापक उन पर ताला जड़कर रखते हैं। जिससे छात्र शौच आदि के लिए खुले में जाने को मजबूर रहते हैं। इसलिए सरकारी विद्यालयों से अभिभावकों का मोहभंग हो रहा है। ऐसा नहीं है सभी सरकारी विद्यालयों की स्थिति ऐसी है। कुछ सरकारी विद्यालय प्राइवेट स्कूलों को शैक्षिक गुणवत्ता के नाम पर टक्कर दे रहे हैं। लेकिन सरकार को अन्य विद्यालयों की ओर भी ध्यान देना चाहिए। जिससे बच्चों को बेहतर शिक्षा प्राप्त हो सके। अन्यथा वह दिन दूर नहीं, जब लोगों का पूरी तरह से सरकारी विद्यालयों से मोह भंग हो जाएगा और तब सरकार को सभी सरकारी विद्यालयों पर ताले जड़ने होंगे।


निर्देश चैहान, हरिद्वार


साभार जागरण

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