प्रदेश के ज्यादातर सरकारी इंजीनियरिंग और मेडिकल शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की भारी कमी हैं, जिसके कारण तकनीकी शिक्षा कामचलाऊ स्थिति में आ गई हैं और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हाशिये पर चली गई थी। तकनीकी शिक्षण संस्थानों में रिटायरमेंट की आयु बढ़ाने से केवल उन्हीं प्रध्यापकों को लाभ हुआ, जो विभागाध्यक्ष थे या फिर सीनियर प्रोफेसर के पद पर थे और इस निर्णय से कोई लाभ नहीं हुआ, क्योंकि ऐसे प्रोफेसर शिक्षण कार्यो में सबसे कम रुचि रखते है। फिर सरकाी तकनीकी शिक्षण संस्थानों में संविदा या कांट्रेक्टर पर कुछ सहायक प्रोफेसर रखे गए है, जिनके पास स्वाभाविक ही अनुभवों की कमी तो है ही, उनकी कोई जवाबदेही तय नहीं। विधार्थियों के लिए इससे बड़ा अभिशाप और क्या होगा कि इतनी कठिन प्रवेश परीक्षाएं उत्तीर्ण करने के बाद भी वे गुणवत्तायुक्त शिक्षा से वंचित है।
रचना रस्तोगी, मेरठ
साभार हिन्दुस्तान
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