प्रो. निरंजन कुमार के लेख ‘उच्च शिक्षा में एक नया प्रयोग’ में दिए गए सुझाव अपनी जगह ठीक हैं, लेकिन उच्च शिक्षा के क्षेत्र में किए जा रहे इस नए प्रयोग से बौद्धिक जगत में अनेक जिज्ञासापरक प्रश्न उभर रहे हैं। क्या निकट भविष्य में भारत सरकार उच्च शिक्षा की तर्ज पर माध्यमिक और प्राथमिक शिक्षा के लिए भी अलग से आयोगों का गठन करेगी? यदि हां! तो इनमें आपसी तालमेल की क्या व्यवस्था होगी? शिक्षाविदों का शुरू से ही यह मंतव्य रहा है कि भारतीय शिक्षा सरकारी नियंत्रण से मुक्त होकर न्यायपालिका और चुनाव आयोग की तरह स्वायत्तशासी बने। इस हेतु राष्ट्रीय स्तर पर देश की समग्र शिक्षा व्यवस्था को संचालित करने के लिए स्वायत्तशासी ‘राष्ट्रीय शिक्षा आयोग’ बनाने की जरूरत है। इसी आयोग के अधीन उच्च शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा और प्राथमिक शिक्षा के तीन सर्वोच्च निकाय गठित किए जाएं। ये निकाय राष्ट्रीय शिक्षा आयोग के निर्देशन में शिक्षण संस्थाओं की मान्यता, पाठ्यक्रम और शिक्षक-चयन के काम को राष्ट्रीय स्तर पर अंजाम दें। उच्च, माध्यमिक और प्राथमिक शिक्षा के राष्ट्र स्तरीय निकायों का गठन इसी ‘राष्ट्रीय शिक्षा आयोग’ द्वारा किया जाय। देश की शिक्षा को जब तक इस रूप में ‘स्वायत्तशासी’ नहीं बनाया जाएगा, तब तक इस तरह के नए-नए प्रयोग कारगर साबित नहीं होंगे।
डॉ. विष्णु प्रकाश पाण्डेय, अलीगढ़
साभार जागरण
Comments (0)