सूर्योदय से सूर्यास्त की अवधि को हिंदी में ‘दिवस’ और अंग्रेजी में ‘डे’ कहते हैं। साल के 365 दिनों में अनेक प्रकार के ‘दिवस’ मनाते हैं हम, जिनकी यात्रा जनवरी के गणतंत्र दिवस से प्रारंभ हो शहीद दिवस, मजदूर दिवस, स्वतंत्रता दिवस, शिक्षक दिवस, बाल दिवस, महिला दिवस इत्यादि पर संपन्न होती है। इस बीच मूर्ख दिवस भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवा लेता है। रही ‘डे’ की, तो नित नए ‘डे’ सुनाई पड़ते हैं अब। आज हिंदी दिवस है। जाहिर है, सुबह से शाम तक हिंदी। भला हो, पांच-एक दशक पहले तय हो गया, अन्यथा यह भी मदर्स डे, फादर्स डे, वैलेंटाइन डे की तरह हिंदी डे कहलाता। निज भाषा उन्नति अहै की एहसास देने वाला हिंदी दिवस अगर कहीं 29 फरवरी को मनाया जाता, तो चार साल में एक ही बार याद करते हम हिंदी को। इस डे कल्चर से कम से कम एक दिन मन-प्राण से याद करना सुनिश्चित तो है। इस शुभ दिन दफ्तरों में हिंदी की धूम है। कहीं-कहीं शासन के डंडे में पूरे पखवाड़े फहराता है हिंदी का झंडा। हिंदी की ‘जन्माष्टमी’ को सज-संवर उठती है हिंदी की झांकी। देवी-देवताओं के मानिंद स्तुति। भरपूर श्रृंगार। कविता, कीर्तन, कव्वाली, सब हिंदी में। नाटक ही नाटक। पूरे दिन हिंदी के कीर्तन उसी की अजान। हिंदी की गति, प्रगति पर वार्ताएं। जिस प्रकार दो अक्तूबर को हमें चरखे की हुड़क मारती है, उसी प्रकार हिंदी किताबों की सजावट। शब्द-सामथ्र्य की कुश्ती, हिंदी के उत्कर्ष के लिए कवि सम्मेलन। अंग्रेजी के स्विमिंग पूल में तैराकी करने वाले इस दिन हिंदी के पोखर में डुबकी लगाते हैं। अंग्रेजी का उपवास। करवा चौथ सरीखी धार्मिकता। सूर्यास्त के बाद फिर वही ठूंसकर अंग्रेजी। अतिरिक्त भावुक आत्माएं सरकारी काम-काज में उसकी दुर्गति पर आंसू जरूर बहाती हैं। बावजूद इसके सर्वत्र जय-जय। एकदिनी स्थापना के उपरांत गणेशोत्सव भांति अगले बरस तू जल्दी आ वाले भाव से समुद्र में विसर्जन। अमर रहे यह एक दिवसीय प्रेम। कम से कम एक दिन तो चांदी रहती है हिंदी की, बाकी दिन तो उसे ‘सोना’ ही है।
लेखक -अषोक संड
साभार -दैनिक हिन्दुस्तान
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