उच्च शिक्षा को गुणवत्तापूर्ण और पारदर्शी बनाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा पैंसठ साल पुराने विश्वविधालय अनुदान आयोग (यूजीसी)की जगह भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (एचईसीआई) के गठन की दिशा में कदम बढ़ाना एक साहसी फैसला है, जिससे बेहतर बदलाव की उम्मीद की जानी चाहिए। हमारे विश्वविधालय वैश्विक रैकिंग में लगातार फिसड्डी बने हुए हैं, और उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं के बड़े हिस्से को अगर रोजगार पाने योग्य ही नही समझा जाता, तो यह यूजीसी की विफलता ही है। उसके पास फंडिंग का अधिकार है, जिससे भ्रष्टाचार के अलावा कई और विसंगतियां पैदा हुई, लेकिन निरंतर फलते-फूलते फर्जी विश्वविधालयों के खिलाफ कार्रवाई करने तक का उसे अधिकार नहीं है। इन्हीं विसंगतियों को देखते हुए प्रो. यशपाल कमेटी, राष्ट्रीय ज्ञान आयोग और हरि गौतम कमेटी ने यूजीसी को खत्म कर उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एकल विनियामक के गठन की सिफारिश की थी। उच्च शिक्षा आयोग के गठन के लिए की जा रही कवायद इसी दिशा में कदम है। सरकार ने इसके लिए मसौदा तैयार कर लिया है। और आगामी मानसून सत्र में इससे संबंधित संशोधन विधेयक संसद में पेश करने की योजना है। यूजीसी के हश्र को देखते हुए उच्च शिक्षा आयोग अपना पूरा ध्यान न केवल गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और शोध पर केंद्रित करेगा, बल्कि उसके दिशा-निर्देशों का पालन न करने वाले संस्थानों और उनके कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार भी उनके पास होगा। मसौदें में एक और बदलाव यह किया गया है कि सभी विश्वविधालय इस आयोग के अधीन होंगे, जबकि अब तक निजी और डीम्ड विश्वविधालय कई मामलों में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के पास अब सिर्फ वित्तीय अधिकार ही होंगे। उच्च शिक्षा आयोग को वित्तीय अधिकार न देना तो समझ में आता है, लेकिन केंद्र सरकार द्वारा यह अधिकार पूरी तरह अपने पास रखना नई विसंगतियां पैदा नही करेगा, इसकी भी गारंटी होनी चाहिए। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में जिस किस्म की बदहाली है, उसे देखते हुए बेहतर बदलाव रातोरात संभव नही है, इसलिए जब तक व्यावहारिक धरातल पर परिवर्तन न दिखे, तब तक यूजीसी की जगह नई संस्था का गठन बहुत आश्वस्त होने का कारण शायद ही हो।
साभार अमर उजाला
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