शिक्षा का बदलता स्वरूप

आज की शिक्षा-व्यवस्था और अधिकतर बच्चों के व्यवहार को देखकर यही पता चलता है कि नैतिक शिक्षा का पतन हो गया है। विद्यालयों, शिक्षकों, माता-पिता यानी अभिभावकों व विधार्थियों/बच्चों, सबमें अधिक से अधिक अंक प्राप्त करने की होड़ लगी है। व्यावहारिक ज्ञान व नैतिक शिक्षा की तरफ किसी का ध्यान नहीं है। उच्च से उच्च स्तर के भौतिक संसाधन जुटाने के लिए हम इंसानियत खोते जा रहें है। पहले भारत को अपनी संस्कृति, आचार-विचार के आधार पर विश्व गुरु माना जाता था, लेकिन अब इस पर कोई ध्यान नहीं देता है। नतीजा सबके सामने है। बच्चे अपने बडे-बुजुर्गो का सम्मान करना भूलते जा रहें है। वृद्धश्रमों व बालाश्रमों की संख्या बढ़ती जा रही है। साफ है, हमें अपनी शिक्षा-व्यवस्था में नैतिक व व्यावहारिक शिक्षा को महत्वपूर्ण स्थान देना ही होगा।


अनुज कुमार गौतम, दिल्ली


साभार हिन्दुस्तान

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