ब्रिटेन में पुस्तक व्यवसाय इस समय जबरदस्त मंदी से गुजर रहा है। पिछली सदी के आठवें दशक में कुछ बड़े प्रकाशकों ने छोटे प्रकाशकों को खरीदकर उसी प्रकार हड़प लिया, जिस प्रकार बड़ी मछली छोटी मछली को निगल जाती है। इसके बाद उन्होंने कुछ स्थापित लेखकों की पुस्तकें (पांडुलिपियां) खरीदने के लिए एक-दूसरे से ऊंची से ऊंची बोली लगाना शुरू किया और इस कोशिश में रहे कि किसी लेखक की पुस्तक अधिक से अधिक मूल्य पर खरीदने के कारण उनका नाम हो। मगर यह सब पिछले करीब तीन दशक की बातें हैं। अब पिछले कुछ वर्षों में जो मंदी आई है, उससे उन्हें अपनी भूल का एहसास होने लगा है। अपना घाटा पूरा करने के लिए प्रकाशक अब स्टाफ में कमी कर रहे हैं। यही स्थिति पुस्तक विक्रेताओं की भी है। किताबों की बिक्री इतनी कम हो गई है कि ब्रिटेन के सबसे पुराने पुस्तक विक्रेता चेन डब्ल्यूएच स्मिथ की, जिसकी मेट्रोपॉलिटन लंदन में ही 50 से अधिक दुकानें हैं, पिछले वर्ष इन सबमें 1,000 से भी कम सजिल्द पुस्तकें बिकीं। लंदन के ही एक अन्य बड़े पुस्तक विक्रेता चेन वाटरस्टोन की भी बहुत-कुछ यही स्थिति है।
यह दुकान उस समय कामयाब हो रही है, जब ब्रिटेन का पूरा पुस्तक उद्योग ही घाटे की चपेट में है।
ऐसे में, यदि कोई पुस्तक विक्रेता अपनी दुकान का विस्तार ही नहीं करे, वरन अपनी दुकान में उपलब्ध पुस्तकों का विवरण देने वाली पत्रिका का नियमित प्रकाशन भी जारी रखे, तो इसे पुस्तक जगत मेंआश्चर्य की बात ही समझा जाना चाहिए। पर लंदन में 55 वारेन स्ट्रीट स्थित ‘इंडियन बुक शेल्फश् ने कुछ ऐसा ही किया है। लंदन में पुस्तकों की अन्य दुकानों की अपेक्षा इस दुकान की बिक्री ही नहीं बढ़ रही है, बल्कि यहां पुस्तकों की मांग भी इस कदर बढ़ी है कि ग्राहकों को समय पर पुस्तकें नहीं मिल पा रहीं। बाहर से छोटी सी दिखने वाली यह दुकान अंदर कितनी बड़ी है, और वहां कितनी पुस्तकें होंगी, इसका अनुमान दुकान के अंदर जाए बिना नहीं हो सकता। नीचे से लेकर छत तक शेल्फों में पुस्तकें ही पुस्तकें भरी पड़ी हैं। और ये पुस्तकें भी हैं केवल एक विषय की- भारत संबंधी पुस्तकें।
भारत संबंधी पुस्तकों से आशय सिर्फ भारत में प्रकाशित पुस्तकें नहीं, वरन यूरोप, अमेरिका, एशिया, अफ्रीका आदि किसी भी देश में भारत संबंधी कोई पुस्तक प्रकाशित हुई हो और वह ‘इंडियन बुक शेल्फश् में न मिले या उसके संबंध में दुकान मालिक को पता न हो, यह कुछ अनहोनी-सी बात होगी। शायद इसी कारण ‘इंडियन बुक शेल्फश् ब्रिटेन व यूरोप ही नहीं, संभवतरू दुनिया भर में भारत संबंधी पुस्तकों का सबसे बड़ा केंद्र बन गया है। ‘इंडियन बुक शेल्फश् में केवल अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित पुस्तकें ही मिलती हों, यह बात भी नहीं। भारत की सभी प्रमुख भाषाओं की महत्वपूर्ण व चर्चित किताबें भी यहां मिलती हैं। दुनिया के किसी देश में, किसी भाषा में भारत संबंधी कोई पुस्तक छपी हो, तो वह पुस्तक या उसके संबंध में जानकारी यहां मिल जाएगी। और ‘भारतश् से आशय केवल भारत देश या भारत के इतिहास-भूगोल से नहीं है, वरन भारत संबंधी कोई भी विषय समझा जाना चाहिए। जहां तक मुझे पता है, भारत में ऐसी कोई दुकान ही नहीं, ऐसा कोई पुस्तकालय भी नहीं है, जहां भारत संबंधी पुस्तकों का इस प्रकार विशाल संग्रह हो।
भारत प्रेमियों, विशेषकर पुस्तक प्रेमियों के लिए वहां जाना किसी तीर्थयात्रा से कम नहीं है। ‘इंडियन बुक शेल्फश् इस समय ब्रिटेन या यूरोप भर की ही नहीं, शायद दुनिया भर में भारत संबंधी पुस्तकों की सबसे बड़ी दुकान है। पुस्तक प्रकाशन के क्षेत्र में अमेरिका व ब्रिटेन के बाद भारत तीसरा बड़ा देश है, जहां प्रतिवर्ष लगभग एक लाख पुस्तकें प्रकाशित होती हैं। शायद इसी कारण यूनेस्को ने 2003 में भारत को ‘वर्ल्ड कैपिटल ऑफ बुक्सश् घोषित किया था। उसी समय फेडरेशन ऑफ इंडियन पब्लिशर्स के करीब 150 सदस्यों के सहयोग से स्टार पब्लिशर्स द्वारा संचालित ‘इंडियन बुक शेल्फश् की स्थापना की गई। ‘इंडियन बुक शेल्फश् की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां भारत संबंधी हजारों पुस्तकें तो भरी पड़ी हैं ही, पर यदि वहां आपकी ऐच्छिक पुस्तक उपलब्ध नहीं है, तो जहां कहीं भी वह उपलब्ध होती है, आपके लिए मंगा दी जाती है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
महेन्द्र राजा जैन
वरिष्ठ हिंदी लेखक
साभार हिन्दुस्तान
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