किताबें अनिवार्य भले न हों, पर अनिवार्य होने के बहुत करीब की चीज हैं। ये कुछ नया सोच पाने को संभव बनाती हैं, जिसके बिना हम अधूरे से हैं। जापानी फिल्मकार अकीरो कुरोसावा कहते थे कि ऐसा लगता जरूर है कि किताबें आपको एकांत की ओर ले जाती हैं, पर इन्होंने मुझे हमेशा एकांत से बाहर किया और आसपास की दुनिया के प्रति सकारात्मक बना दिया।
हम किताबों को ज्यादातर अपनी बौद्धिकता बढ़ाने का जरिया भर मानते हैं, जबकि इसके साथ-साथ ये जीवन जीने की कला से हमारा परिचय कराती हैं। अमेरिकी विचारक व शिक्षाशास्त्री होरेस मैन कहते थे कि किताबों के बिना जीवन खिड़कियों के बिना घर के समान है। ये हमें दुनिया भर के विचारों से भरती हैं। यहां विख्यात दार्शनिक सिसरो कहते थे कि अगर आपके पास पुस्तकालय और बागीचा है, तो आपके पास सब कुछ है। जरूरी नहीं कि किताबों का मतलब सिर्फ साहित्य से लगाया जाए। किसी भी विषय की किताब, जो मन के विषय के अनुकूल हो, पढ़ी जानी चाहिए। बिल गेट्स कहते हैं कि मैं अगर नए तरीके से सोच पाने में एक प्रतिशत भी सफल हूं, तो इसका 99 प्रतिशत श्रेय किताबों को दिया जाना चाहिए। कितनी देर किताबें पढ़ने को दी जानी चाहिए, इस पर लोगों की राय अलग-अलग है। कोई इसका जवाब ज्यादा से ज्यादा दे सकता है, तो कोई कम से कम घंटे भर। दरअसल लोगों के पास आज समय की कमी है, इसलिए यह सवाल शोध तक में शामिल है। एसेक्स यूनिवर्सिटी ने तनाव और पुस्तकों के संबंध पर शोध करके पाया कि महज छह मिनट पढ़ने से तनाव का स्तर 68 प्रतिशत तक कम हो जाता है।
साभार हिन्दुस्तान
लेखक प्रवीण कुमार
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