इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीत ने टीईटी (शिक्षक पात्रता परीक्षा) 2017 की उत्तर कुंजी को खारिज करते हुए प्रदेश सरकार को नई मेरिट लिस्ट बनाने का जो निर्देश दिया है, वह शिक्षा तंत्र से जुड़ी गंभीर गड़बड़ियों की ओर ही इशारा करता है। इतना ही नहीं, अदालत ने अगामी 12 मार्च को प्रस्तावित टीईटी की परीक्षा टालने के लिए भी कहा है, क्योंकि पिछली परीक्षा से संबंधित तमाम विसंगतियों कों कम महीने में पूरा करना होगा। यह बेहद क्षुब्ध करने वाली बात है कि शिक्षा की दुर्दशा से संबंधित सच्चाईयां इस प्रदेश का पीछा नहीं छोड़ रहीं। विगत अक्तुबर में हुई टीईटी की परीक्षा की उत्तर कुंजी में 14 सवालों के जवाब गलत थे। तीन सौ से अधिक अभ्यर्थियों ने आपत्तियां दर्ज कर विवादित प्रश्नों को सही करवाने और उन्हें ग्रेस अंक देने की मांग की थी। लकिन विशेषज्ञ समिति से उन शिकायतों की जांच करवाएं बिना प्रधिकरण ने उन आपत्तियों को खारिज कर दिया, हालांकि विगत नवंबर में संशोधित उत्तर कुंजी जारी जरूर की गई। इस पर अभ्यर्थियों ने अदालत की शरण ली। विदू्रप सिर्फ यही नहीं कि शिक्षकों के लिए होने वाली परीक्षा की उत्तर कुंजी गलत थी, बल्कि उसकी शिकायत को गंभीरता से न लेना उससे भी बड़ी विडंबना था। चूंकि परीक्षा से संबंधित प्रश्नपत्र संबंधित एजेंसियों को दे दिए जाने की परिपाटी है, ऐसे में, परीक्षा प्राधिकरण ने गलत उत्तर कुंजी की जिम्मेदारी संबंधित एजेंसी पर थोप दी। अदालत ने अपने फैसले में नियामक प्राधिकरण को उसके कामचलऊ रवैये के लिए स्वाभाविक ही लताड़ लगाई है। चूंकि विवादास्पद 14 सवालों को हटाकर अब नई मेरिट लिस्ट बननी है, ऐसे में जो 65000 अभ्यर्थी उस परीक्षा में पास हुए थे। उनमें से अनेक का नुकसान होना तय है ही। अलबत्ता यह प्रसंग उत्तर प्रदेश सरकार के लिए भी एक सबक होना चाहिए, जो इसी महीने सत्ता में अपने एक साल पूरे कर रही है। मुख्यमंत्री ने भ्रष्टाचार, कुशासन और अव्यवस्था खत्म कर प्रदेश की नई छवि गढ़ने की अपनी प्रतिबद्धता बार-बार दोहराई है। उम्मीद करनी चाहिए की अपनी प्रतिबद्धता बड़े प्रदेश में शिक्षकों की नियुक्ति में विसंगतियों का यह अंतिम उदाहरण होगा।
साभार अमर उजाला
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