अतीत में छिपी भविष्य की कड़ी शीर्षक से लिखे अपने लेख में जगमोहन सिंह राजपूत ने आधुनिक काल की शिक्षा प्रणाली पर अपनी राय रखी है। अतीत से लेकर आधुनिक समय तक इंसान के जीवन, सोच और रहन सहन में बहुत बदलाव आए हैं। परिवर्तन तो प्रकृति का भी नियम है, लेकिन परिवर्तन इस तरह होना चाहिए जिसका कोई साइड इफेक्ट न हो। स्वामी विवेकानंद ऐसी शिक्षा चाहते थे जिससे बालक का सर्वागीण विकास हो सके। बालक की शिक्षा का उद्देश्य उसको आत्मनिर्भर बनाकर अपने पैरों पर खड़ा करना था न कि केवल नौकरी करना, लेकिन अफसोस न तो आज ऐसी शिक्षा देने वाले हैं और न ही ग्रहण करने वाले। समाज में बहुत से ऐसे लोग मिल जाते हैं जो अपने आप को तो बहुत पढ़ा-लिखा मानते हैं, लेकिन उनकी हरकतों को देखकर ऐसा लगता है कि वे शिक्षित होकर भी अशिक्षित ही हैं। जैसे कि शुरुआत करते हैं सामाजिक बुराइयों से। हमारे देश में सबसे बड़ी और शर्मनाम सामाजिक बुराई कन्या भ्रूण हत्या है। इसके लिए मात्र अनपढ़ या गरीब लोग ही जिम्मेवार नहीं हैं, बल्कि कुछ पढ़े-लिखे लोग भी आज की इस वैज्ञानिक युग में रूढ़िवादी विचारधारा में जी रहे हैं। इसी के साथ दहेज प्रथा, छुआछूत, जातिवाद इत्यादि सामाजिक बुराइयां मात्र अशिक्षित लोगों के कारण नहीं बढ़ी हैं, बल्कि इसके लिए अपने आपको पढ़ा-लिखा कहने वाले भी काफी हद तक जिम्मेदार हैं। किसी लालच में आकर हर चुनाव में अपने कीमती मत को बेचने वालों का आंकड़ा शिक्षित वर्ग का भी कोई कम नहीं होगा। इसी तरह कानूनों का तोड़ने में भी पढ़े-लिखे लोग आगे हैं। जैसे कि हेलमेट का प्रयोग न करना, ट्रैफिक लाइटें जंप करना या गाड़ी चलाते समय मोबाइल पर बात करना जैसे गैरकानूनी काम करने में अमीर और अपने आपको ज्यादा पढ़ा-लिखा समझने वाले शान समझते हैं। शिक्षा का मतलब सिर्फ किताबों का ज्ञान नहीं होता है, बल्कि नैतिकता और आसपास की अच्छी बातों का ज्ञान होने के साथ-साथ इंसानियत का ज्ञान होना भी बहुत जरूरी है। असली शिक्षित इंसान उसे ही समझा जाता है जिसके अंदर नैतिकता की भावना हो, इंसानियत हो, समाज में अच्छी शिक्षा का प्रसार करे और भौतिकवाद में भी अच्छी तरह खुद जिए और लोगों को भी अच्छी तरह जीने की सलाह दे।
राजेश चैहान, जालंधर
साभार जागरण
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