सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद यूनिफॉर्म व किताबों की बिक्री को लेकर निजी स्कूलों की मनमानी चिंताजनक है। स्कूलों के दबाव के कारण अभिभावक चिह्नित स्टेशनरी और कपड़ों की दुकानों में मनचाही कीमत पर बिक रही पुस्तकें व यूनिफॉर्म खरीदने को मजबूर हैं। कारण यह कि जो पुस्तकें निजी स्कूल अभिभावकों से खरीदने को कह रहे हैं, वे चुनिंदा दुकानों में ही मिल रही हैं। इससे अभिभावक खुले बाजार में किताबों व कॉपियों में मिलने वाली छूट का लाभ नहीं ले पा रहे हैं। यह स्थिति तब है जब प्रदेश सरकार ने इस वर्ष नए सत्र से एनसीईआरटी की किताबें लागू करने के निर्देश दिए थे। विभाग का दावा था कि इसे लेकर सख्ती बरती जाएगी। इसके लिए मुख्य शिक्षाधिकारियों के साथ ही खंड शिक्षाधिकारियों की जवाबदेही तय की गई। जब इसे लागू करने की बारी आई तो निजी स्कूलों ने सरकार के निर्देशों को ठेंगा दिखाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। स्कूलों में रिजल्ट के साथ ही बच्चों को निजी पब्लिकेशन की पुस्तकों की सूची थमाई जा रही है। निजी स्कूल संचालक संयुक्त फोरम बनाकर सरकार के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं। स्कूल संचालकों का तर्क है कि एनसीईआरटी की पुस्तकों में बेहद सीमित पाठ्यक्रम है। अभ्यास प्रश्न भी सीमित हैं। साथ ही स्कूलों में रेफरेंस बुक लगाने की इजाजत दी जाए। यह हाल तो सीबीएसई बोर्ड के स्कूलों का हैं। वहीं आइसीएसई बोर्ड में फिलहाल इस तरह की कोई अनिवार्यता नहीं हैं। इस कारण यहां अभिभावकांे को स्कूल प्रबंधन की ओर से पुस्तकों व यूनिफॉर्म को लेकर दिए जा रहे फरमान चुपचाप मानने पड़ रहे हैं। जिस प्रकार से अब निजी स्कूल इस मसले पर सरकार के निर्देशों को चुनौती दे रहे हैं उससे साफ है कि इससे उनकी कमाई पर सीधे असर पड़ रहा है। दरअसल, स्कूलों में पुस्तकों व यूनिफॉर्म से जुड़ा कारोबार 50 करोड़ से भी अधिक का है। इसमें स्कूल संचालकों व दुकानदारों के बीच साठगांठ के आरोप लगते रहे हैं। पहले तो स्कूल खुद ही काउंटर लगाकर पुस्तकें व यूनिफॉर्म बेचते थे, मगर सरकार की सख्ती से इस पर थोड़ा अंकुश लगा। सरकार को एक बार फिर इस दिशा में कठोर कदम उठाने की जरूरत है।
साभार जागरण
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