गुणवत्तापरक शिक्षा

सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता पर उठ रहे सवालों के बीच सरकार भी सजग नजर आने लगी है। यही वजह है कि पब्लिक स्कूलों की तर्ज पर सरकारी स्कूलों में भी कक्षा एक से बाहरवीं तक मासिक आकलन परीक्षा का प्रावधान किया गया है। इसकी समीक्षा खुद मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव करेंगे। सरकार की यह पहल सराहनीय है। शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए लंबे समय से इसकी जरूरत महसूस की जा रही थी। दरअसल, इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती अभिभावकों में सरकारी स्कूलों की साख को लौटाना है। हालात चिंताजनक स्थिति में पहुंच चुके हैं। प्रदेश में 20387 प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूल हैं। जबकि माध्यमिक स्कूलों की संख्या 3260 है। बावजूद इसके शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर प्रथम की एन्यूअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन (असर) की रिपोर्ट चैंकाने की बजाए चिंता में डालने वाली है। आलम यह है कि 60 गांवों में किए गए सर्वेक्षण के दौरान 14 से 18 साल की आयु के आधे से ज्यादा किशोर न गणित के सवाल हल कर सके और न ही अंग्रेजी पढ़ पाए। राजधानी देहरादून को लेकर किए गए सर्वेक्षण के नतीजे ही आंखें खोलने वाले हैं। अस्सी फीसद साक्षरता दर वाले प्रदेश की राजधानी में इस डिजिटल युग में भी 36.3 फीसद युवाओं ने कभी कम्प्यूटर का इस्तेमाल नहीं किया। 21.9 फीसद एटीएम का उपयोग नहीं कर सकते। सवालों की फेहरिस्त यहीं नहीं थमती। प्रदेश में ड्राप आउट बच्चों की संख्या बढ़ रही है। स्थिति यह है कि माध्यमिक शिक्षा में 15 हजार से अधिक और प्राथमिक शिक्षा में दो हजार से अधिक विद्यार्थी स्कूल छोड़ रहे हैं। चिंता इसलिए भी ज्यादा है कि पहाड़ के साथ मैदानी इलाकों में भी ऐसे बच्चों की संख्या बढ़ रही है। मसलन राजधानी देहरादून इस मामले में शीर्ष पर है। यहां यह आंकड़ा साढ़े आठ हजार है, जबकि पर्वतीय क्षेत्रों में चमोली में स्थिति खराब है, जहां दो हजार से ज्यादा छात्र-छात्रएं बीच में ही स्कूल को अलविदा कह रहे हैं। आखिर ऐसी परिस्थितियां क्यों उत्पन्न हो रही हैं। सच तो यह है कि यह पूरे सिस्टम पर ही सवाल है। शिक्षा को लेकर उत्तराखंड का जनमानस जागरूक है और लालायित भी, लेकिन परिस्थितियों के सम्मुख बेबस दिखायी देता है। यह समझने की जरूरत है कि स्कूल का अर्थ सिर्फ एक अदद भवन नहीं है, बल्कि इसके लिए चाहिए समर्पित शिक्षक और मूलभूत सुविधाएं। आमूलचूल बदलाव के बिना हालात में सुधार की ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती।


साभार जागरण

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