पुस्तकों की प्रचार शैली, जो लेखकों का सिरदर्द है

पाश्चात्य देशों में जो लेखक ‘बेस्ट सेलिंग’ हो जाते हैं, यानी जिनकी पुस्तकें लाखों की संख्या में बिकती हैं, उन्हें देखकर कभी-कभी हमें उन ‘बेचारों’ पर दया-सी आती है। उनकी पुस्तकों के प्रचार के लिए प्रकाशकों द्वारा समय-समय पर जो विशेष आयोजन किए जाते हैं, उन्हें ‘बुक साइनिंग सेशंस’ कहा जाता है। इनमें उन्हें कभी-कभी दो-तीन घंटों तक अपनी पुस्तकों पर हस्ताक्षर करने का संभवतरू कभी खत्म न होने वाला उबाऊ काम भी करना होता है। लंदन में मुङो अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त ब्राजीली उपन्यासकार पाउलो कोल्हो और बुकर पुरस्कार प्राप्त किरण देसाई के ‘बुक साइनिंग सेशंस’ में जाने का मौका मिला। इन दोनों लेखकों का अलग-अलग कार्यक्रम ब्रिटेन में पुस्तक-विक्रेता की सबसे बड़ी श्रृंखला वाटरस्टोन द्वारा आयोजित किया गया था। जिस दिन ये कार्यक्रम होने थे, उस दिन के समाचारपत्रों में तो विज्ञापन के रूप में इसकी सूचना प्रकाशित की ही गई थी, दुकान के अंदर और बाहर भी दो सप्ताह पहले इस की सूचना लगा दी गई थी। ऐसे सेशन में प्रवेश निरूशुल्क होता है। कभी-कभी स्थान सीमित होने के कारण भीड़ कम करने के लिए प्रवेश टोकन द्वारा भी होता है। मैं कार्यक्रम शुरू होने के लगभग आधा घंटा पहले दुकान में पहुंचा, तो पता चला कि टोकन एक सप्ताह पूर्व ही समाप्त हो चुके हैं, यानी पाउलो कोल्हो की पुस्तक पर उनके हस्ताक्षर कराने का ‘सौभाग्य’ मुङो नहीं मिल सकेगा, पर मैं चाहूं, तो दर्शक के रूप में वहां जा सकता हूं। वहां पहुंचने पर देखा कि 40-50 या 100 नहीं, वरन 500 से भी अधिक लोग, युवा वर्ग लड़के-लड़कियां हस्ताक्षर कराने के लिए जुटे हुए थे। वहां बैठने की कहीं जगह नहीं थी, सभी लोग जिसको जहां जगह मिली, खड़े थे या फर्श पर ही, पुस्तकों के शेल्फ के बीच में और सीढ़ियों पर बैठे हुए थे। सभी के हाथों में पाउलो कोल्हो की ताजा पुस्तक थी। लगभग इसी प्रकार की स्थिति कुछ दिन बाद किरण देसाई के ‘बुक साइनिंग सेशंस’ में भी देखने को मिली। यद्यपि ये दोनों आयोजन वाटरस्टोन बुक शॉप की तीन मंजिली पिकेडिली शाखा में किए गए थे, इसमें प्रकाशकों का भी खूब सहयोग था। प्रकाशक केवल लंदन ही नहीं, ब्रिटेन के सभी प्रमुख शहरों में भी इस प्रकार के आयोजन करते हैं, ताकि पुस्तक का अधिक से अधिक प्रचार हो। ये ‘बुक साइनिंग सेशंस’ लेखकों के लिए एक प्रकार से दुरूस्वप्न ही होते हैं, पर मजबूरी में उन्हें उपस्थित होना ही पड़ता है। करोड़पति लेखकों को इस ‘झंझट’ से उबारने के लिए एक अमेरिकी प्रकाशक ने अनोखा तरीका ईजाद किया। उसने एक विज्ञापन में कुछ अज्ञात लेखकों की ओर से ऐसे पार्ट टाइम लोगों की आवश्यकता बतलाई, जो लेखकों की ओर से उनकी पुस्तकों पर उनके हस्ताक्षर बना सकें। सफल आवेदनकर्ता लेखकों के हस्ताक्षर की नकल करने का अभ्यास कर हूबहू उनके हस्ताक्षर करते थे, जिसके लिए उन्हें प्रति 200 प्रतियों के लिए 25 डॉलर मिलते थे। न्यूयॉर्क के एक ब्लॉगर ‘गाकर’ को जब इस विज्ञापन का पता चला, तो उसने इस प्रकाशक और उसके लेखकों का पता लगाने की कोशिश की, पर उसे सफलता नहीं मिली। विज्ञापन में कहा गया था कि जाली हस्ताक्षर का यह सेशन लास एंजिल्स में दो दिन (प्रति दिन छह घंटे) तक चलेगा। एक प्रति पर हस्ताक्षर करने में लगभग 15 सेकंड का समय लगेगा और इस अवधि में 14 हस्ताक्षरकर्ताओं की टीम 53,750 प्रतियों पर हस्ताक्षर कर डालेगी। इस प्रकार जाली हस्ताक्षरों की यह ‘जादूगरी’ अमेरिका में कोई नई बात नहीं है। ‘जेटीलि राय’ नाम से लिखने वाली लेखिका पुस्तकों पर हस्ताक्षर करने के लिए अपने स्थान पर अपने सहयोगी को बिठा देती थी। कनाडाई बुकर पुरस्कृत लेखिका मारग्रेट एटवुड ने इस काम के लिए ‘लॉन्ग पेन’ नामक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग विधि का ‘आविष्कार’ किया, जिसमें पुस्तकों पर दस्तखत करने के लिए किसी प्रकार की जालसाजी नहीं करनी पड़ती है। रिमोट से हस्ताक्षर करने का यह तरीका अपनाने से पुस्तकों के प्रचार के लिए उन्हें हर जगह जाना नहीं पड़ता। इस प्रकार वह यात्र करने का समय भी बचा लेती हैं।


(ये लेखक के अपने विचार हैं)


 


महेन्द्र राजा जैन


वरिष्ठ हिंदी लेखक


साभार हिन्दुस्तान


 


 

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