उत्तराखंड में प्रतियोगी परीक्षाओं की पवित्रता सवालों के घेरे में है। अवर अभियंता भर्ती के लिए आयोजित परीक्षा में एक ही कोचिंग इंस्टीट्यूट के 66 छात्रों के निकलने पर उठे सवालों की आंच अभी बरकरार है। अब उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय में चिकित्साधिकारी पद के लिए हुए परीक्षा को लेकर बखेड़ा शुरू हो गया है। आरोप है कि प्रश्नपत्र में पूछे गए सभी सवाल एक ही गाइड से थे। प्रतियोगी परीक्षाओं में गड़बड़ी के आरोप पहली बार नहीं हैं। इससे पहले पटवारी भर्ती से लेकर तमाम मामले सुर्खियों में रहे हैं। हालांकि सच्चाई जांच के बाद ही पता चलेगी, लेकिन विभिन्न परीक्षाओं कीं तैयारी कर हजारों उम्मीदवारों का भरोसा अवश्य लड़खड़ा गया है। ऐसे में आम जनमानस में पनप रहे शक के बीच कुछ सवाल अहम हो गए हैं। मसलन, क्या प्रतियोगी परीक्षाओं में पारदर्शिता का अभाव है और क्या परीक्षाओं का संचालन कर रही एजेसियां किसी के प्रभाव में कार्य कर रही हैं। सवाल यह भी है कि क्या कोचिंग सेंटर के संचालकों की भी इसमें कोई भूमिका है। इसके अलावा सत्ता के गलियारों में रसूख रखने वाली ऊंची शख्सियतों पर भी अंगुली उठती रही हैं। यह विडंबना ही है कि जिस राज्य की नींव उपेक्षा के कारण उपजे आंदोलन से पड़ी, वहां फिर स्थिति वैसी ही हो गई। अविभाजित उत्तर प्रदेश से अलग राज्य के रूप में जन्मे उत्तराखंड में उम्मीद की जा रही थी कि यह प्रदेश उन सब बुराइयों से दूर रहेगा, जिसके कारण ऐतिहासिक आंदोलन करना पड़ा। इन हालात में सरकार के लिए भी यह एक चुनौती है। चुनौती इस मायने में सत्ता संभालने के बाद पहले ही दिन से मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार को लेकर सख्त रुख दिखाते रहे हैं। भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाने की बात की जा रही है। अब तक के अनुभव बताते हैं आमतौर पर ऐसे मामलों की जांच लंबा समय ले लेती है और जब तक परिणाम आता है पीड़ितों की उम्र बीत चुकी होती है। जाहिर है कि द्रुत गति से जांच कर दोषियों के खिलाफ जल्द से जल्द सख्त कार्रवाई भी करनी होगी। अब जरूरत इस बात की है कि सरकार प्रतियोगी परीक्षाओं के आयोजन में पारदर्शिता से काम ले। सवाल राज्य के भविष्य का है। ईमानदार और योग्य अधिकारी ही प्रदेश को नई दिशा देने के साथ ही जन आंकाक्षाओं पर खरे उतर सकते हैं। यह तभी हो सकेगा जब उनके चयन की प्रक्रिया में पारदर्शिता रहेगी। वरना सवालों के जंगल में जवाब यूं ही भटकते रहेंगे।
साभार जागरण
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