उच्च शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता के साथ संस्थानों की आत्मनिर्भरता बढ़ाने की दिशा में सरकार का यह बड़ा फैसला है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने जेएनयू, बीएचयू, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ हैदराबाद समेत देश के 62 उच्च शिक्षण संस्थानों को स्वायत्त घोषित कर दिया है। इन संस्थानों को अपने फैसले लेने के लिए अब यूजीसी पर निर्भर नहीं रहना होगा। ये अब खुदमुख्तार होंगे। सरकार का दावा तो यही है कि इन संस्थानों की शैक्षिक गुणवत्ता और इसे बनाए रखने में इनकी निरंतरता को देखते हुए यह फैसला लिया गया है। माना गया है कि ये संस्थान अपने बूते अपनी दिशा खुद तय कर सकते हैं और स्वाभाविक रूप से ऐसे में उन्हें अपना खर्च भी खुद उठाने में सक्षम बना दिया जाना चाहिए। यानी नए फैसले के बाद ये अपनी दाखिला प्रक्रिया, फीस संरचना और पाठ्यक्रम भी खुद ही तय कर सकेंगे। नए पाठ्यक्रम और विभाग शुरू करने में इन्हें किसी का मुंह नहीं देखना होगा। ऑफ कैंपस गतिविधियों के संचालन, रिसर्च पार्क, कौशल विकास के नए पाठ्यक्रम तैयार करने, विदेशी छात्रों के प्रवेश से जुड़े नियम बनाने, शोध की सुविधाएं बढ़ाने-घटाने का अधिकार भी इनके पास होगा। अपनी परीक्षाओं का मूल्यांकन भी ये खुद करेंगे। इन्हें विदेशी शिक्षक नियुक्त करने के साथ ही अपनी मर्जी का यानी इन्सेंटिव बेस्ड वेतन देने की भी छूट होगी। दुनिया के किसी भी विश्वविद्यालय के साथ समझौता करने, दूरस्थ शिक्षा के नए पाठ्यक्रम बनाने जैसे मामलों में भी इन पर कोई बंदिश नहीं रहेगी। सरकार की नजर में वैश्विक प्रतिस्पर्धा के माहौल में उच्च शिक्षा क्षेत्र में ऐसा आमूल और क्रांतिकारी परिवर्तन लाए बिना गुणवत्तापरक शिक्षा की बात सोची भी नहीं जा सकती। यह अलग बात है कि सरकार के इस प्रयास का विभिन्न स्तरों पर पहले से विरोध हो रहा है। तमाम शिक्षाविद, अध्यापक और छात्र इसे सार्वजनिक वित्त पोषित संस्थाओं के व्यवसायीकरण की दिशा में एक और कदम मान रहे हैं। एक झटके में मान भी लिया जाए कि शैक्षिक उदारवाद का यह प्रयोग शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा बदलाव लाने वाला होगा, लेकिन यह सब करते वक्त यह भी तो सुनिश्चित करना ही होगा कि वाकई यह कदम रचनात्मक बदलाव लाने वाला ही साबित हो। इस बात को सिरे से नजरअंदाज करने का कोई कारण नहीं है कि शैक्षिक अराजकता और शिक्षा माफिया के फलने-फूलने के इस दौर में कहीं यह कदम हमारे गौरवशाली संस्थानों को भी व्यावसायिकता के उस दलदल में न धकेल दे, जहां से उन्हें उबार पाना मुश्किल हो जाए। ऐसे समय में, जब निजी स्कूल-कॉलेजों की आर्थिक मनमानी व निरंकुशता की बहस लगातार तेज हो रही हो, माना जा रहा हो कि इनकी मनमानी ने शिक्षा को आम आदमी से दूर कर दिया है, यह कदम कहीं नया खतरा बनकर सामने न आ जाए। यह आशंका अनायास तो नहीं है कि अपने संसाधन खुद जुटाने का अधिकार देकर स्वायत्तता देने वाला यह फैसला भारी फीस वृद्धि और शैक्षिक मनमानी के रूप में बोझ न बन जाए। खतरा यह भी है कि जिस तरह निजी कॉलेजों की मनमानी के कारण हाशिये का समाज उच्च शिक्षा से दूर होता गया है, वही हाल जेएनयू, बीएचयू और एएमयू जैसी संस्थाओं का भी नहीं हो जाएगा, जहां से आम भारतीय बच्चे भी उच्च शिक्षा प्राप्त करके लंबी उड़ान भरते रहे हैं।
साभार हिन्दुस्तान
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