गढ़वाल के उत्तरकाशी जिले में यमुना घाटी के स्कूलों में हमारे दौरे के समय ही शिक्षा विभाग द्वारा आयोजित वार्षिक खेल-कूद समारोह चल रहे थे। इससे हमें वहां के सरकारी स्कूलों में होने वाले खेल-कूद की पृष्ठभूमि को करीब से समझने का मौका मिला। हम जिन स्कूलों में गए, उनमें से सिर्फ दो में ठीकठाक खेल के मैदान थे। वैसे भी उत्तरकाशी में ग्रेनाइट की पहाड़ियों के चलते स्कूल के छोटे-छोटे अहाते भी उबड़-खाबड़ होते हैं। जमीन ऐसी है कि गेंद से खेलना चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि गेंद ढलान पर सरपट भागती है। इसके चलते ज्यादातर स्कूल खो-खो और कबड्डी पर ही ध्यान देते हैं। इस संदर्भ में दामता गांव की कहानी प्रासंगिक है। यहां लड़कियों का अपर प्राइमरी स्कूल सड़क से कुछ दूर तेज ढलान पर है। यह कबड्डी में अपने अच्छे प्रदर्शन के लिए ख्यात है। इसके खिलाड़ी राज्य-स्तरीय चैंपियनशिप में भाग लेते रहे हैं। यहां आकर हमने कबड्डी में इनके बेहतरीन प्रदर्शन के कारणों के अलावा और भी बहुत कुछ सीखा। समझ में आया कि किस तरह एक अच्छा स्कूल वंचित पृष्ठभूमि की बच्चियों के लिए जीवन बदलने का अनुभव बन जाता है। दामता कन्या अपर प्राइमरी स्कूल में 105 लड़कियां पढ़ती हैं। 64 अनुसूचित जाति व जनजाति से, जबकि 38 पिछड़े वर्ग की हैं। इनके स्कूल पहुंचने की कहानी भी दिलचस्प है। आसपास के 17 गांवों के लोग अपने लड़कों को दामता के निजी स्कूलों में भेजते हैं, जहां लड़कों को किराये पर रहना पड़ता है। मां-बाप इन लड़कियों को भी साथ भेज देते हैं, ताकि बहनें अपने भाइयों के खाने और देखभाल का काम कर सकें। यही लड़कियां दामता कन्या विद्यालय में पढ़ने आती हैं। इनके लिए यह स्कूल जिंदगी बदलने वाला अनुभव है।स्कूल के नोटिस बोर्ड पर प्रमुखता से लिखा मिशन वक्तव्य- ‘शिक्षा, खेल-कूद, कला और संस्कृति के संतुलन से सर्वागीण विकास’, किसी का भी ध्यान खींच लेगा। इसकी स्थापना 2011 में हुई और तभी से दुर्गेश इसकी हेड टीचर हैं। लगभग 45 साल की दुर्गेश ने 20 साल पहले एमएससी और बीएड की पढ़ाई के बाद शिक्षा विभाग में नौकरी शुरू की। वह लखनऊ के आसपास से यहां आई हैं। लड़कियों और उनकी शिक्षा के प्रति समाज के पितृ-सत्तात्मक रवैये के खिलाफ उनका आक्रोश उन्हें इस स्कूल को बेहतर बनाने को प्रेरित करता है। दो सहकर्मियों, सविता चमोली और उषा किरण बिष्ट के सहयोग से दुर्गेश अकादमिक व अन्य गतिविधियों में ऐसा संतुलन बिठाने की कोशिश में हैं, जो छात्रओं की क्षमता के समग्र विकास का जरिया बने। दामता कन्या स्कूल की 12 से 14 वर्ष की मिलनसार व आत्म-विश्वास से भरी बच्चियों से बात करते हुए साफ दिखता है कि दुर्गेश अपनी मेहनत से अपनी दृष्टि को वाकई हकीकत में बदल रही हैं। उनका प्रयास है कि छात्राओं में आत्म-विश्वास, संतुलन और ऐसी क्षमताओं का विकास हो कि वे हर चुनौती का सामना कर सकें। अकादमिक पढ़ाई के साथ यहां लड़कियों को खेल-कूद, साहित्य व ललित कलाओं में खुद को अभिव्यक्त करने के मौके भी मिल रहे हैं। उन्हें जूडो-कराटे सिखाया जाता है। दुर्गेश और उनकी सह-शिक्षिकाओं ने अपनी जेब से पैसा लगाकर लेजिम सेट, डंबल और जूडो-ड्रेस खरीदे हैं। अगर आप शनिवार को वहां जाएं, तो देखेंगे कि वह ‘पढ़ाई से छुट्टी का दिन’ है और उस दिन सिर्फ खेल-कूद, संगीत, कला और नाटक होते हैं। बच्चियों को हर ऐसा सवाल पूछने के लिए प्रेरित किया जाता है, जिसके प्रति उनमें तनिक भी जिज्ञासा है। दुर्गेश बताती हैं कि लड़कियां उनसे ऐसे सवाल भी सहज पूछ लेती हैं, जो वे अपनी मां से पूछने में ङिाझकेंगी। दामता की कबड्डी टीम ने राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में भी उत्तराखंड का प्रतिनिधित्व किया है। जब हमने ब्लॉक, जिला या राज्य स्तर पर खेल चुकी छात्रओं को सामने आने को कहा, तो एक दर्जन से ज्यादा लड़कियां सामने खड़ी हो गईं। ये विजेता लड़कियां स्कूल के उबड़-खाबड़ अहाते में अभ्यास करती हैं, जहां ग्रेनाइट के ढेरों पत्थर उभरे हुए हैं। हमने पूछा, ‘तुममें से कितने के घुटने छिले हुए हैं?’ हंसते-हंसते सभी हाथ उठ गए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
एस. गिरिधर
सीओओ, अजीम प्रेमजी फाउंडेशन
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