शिक्षक ही नहीं, हर नागरिक को शिक्षा से जुड़ना होगा

तो फिलहाल यह जिम्मेदारी हम सब पर है। उन सब लोगों पर, जो किसी न किसी रूप में शिक्षा के एक या दूसरे आयाम से जुड़े हुए हैं। जब शिक्षा की भूमिका इतनी महत्वपूर्ण है, तो फिर इसकी जिम्मेदारी सिर्फ कुछ शिक्षकों पर, जिन्हें बहुत ही कम वेतन दिया जाता है, नहीं रह जाती और न ही यह काम बदहाल सरकारी शिक्षा विभाग का है। यह जिम्मेदारी हम पर है कि हम यह सुनिश्चित करें कि इस देश की सारी वयस्क आबादी किसी न किसी रूप में शिक्षा की धारा से जुड़े। देश के हर व्यक्ति को इससे सरोकार रखना चाहिए। आज पर्यावरण के बारे में काफी बातें होती है और हर व्यक्ति इस दिशा में अपनी ओर से थोड़ा बहुत करने की कोशिश कर रहा है। इसी तरह से इस देश में रहने वाले हर व्यक्ति को शिक्षा के क्षेत्र में थोड़ा-बहुत योगदान जरूर करना चाहिए, क्योंकि आने वाली पीढ़ी इसी पर निर्भर करेगी। जब शिक्षा की भूमिका इतनी महत्वपूर्ण है, तो फिर इसकी जिम्मेदारी सिर्फ कुछ शिक्षकों पर, जिन्हें बहुत ही कम वेतन दिया जाता है, नहीं रह जाती और न ही यह काम बदहाल सरकारी शिक्षा विभाग का है। ऐसे नहीं होगा। यह हर नागरिक की जिम्मेदारी है। यह बेहद जरूरी है कि इस देश का हर वयस्क, बल्कि हर नागरिक, चाहे जिस भी रूप में संभव हो, चाहे जितना हो सके, उतना ही, देश की शिक्षा-प्रकिया में शामिल हो।


हर स्तर के व्यक्ति के लिए अलग शिक्षा व्यवस्था


जैसे कि पहले चर्चा हो चुकी है कि हमारा सरोकार अभी तक शिक्षा की चादर को किसी तरह से सब तरफ फैलाना रहा है। इसे सब ओर फैलाने के चक्कर में कई जगह से यह फट गई है, इसमें कई छेद हो गए हैं। एक समय था कि जब इसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने की बात थी, लेकिल आज समय है कि हमारा सारा जोर क्वालिटी के निर्माण पर होना चाहिए। अब समय आ गया है कि हम न सिर्फ इन छेदों को बंद करें, बल्कि इसे इतनी खूबसूरती से दुरुस्त कर आगे बढ़ाएं कि यह बेहतर शिक्षा व्यवस्था के तौर पर उभरकर सामने आए। हमारे बच्चे इसका आनंद ले सकें और हम लोग उस पर गर्व कर सकें। एक समय था कि जब इसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने की बात थी, लेकिल आज समय है कि हमारा सारा जोर क्वालिटी के निर्माण पर होना चाहिए। यह काम दो अलग-अलग समय पर नहीं होना चाहिए था, क्योंकि कोई भी देश, खासकर भारत जैसा देश, सिर्फ एक देश नहीं है। भारत के कई स्तर हैं। हमें हर स्तर के लिए एक अलग रूपरेखा तैयार करनी चाहिए थी। लेकिन हम लोगों में समानता व धर्मनिरपेक्षता को लेकर एक बेहद सतही समझ है, इसकी वजह से हमें लगता है कि हर किसी को एक जैसे स्कूल में जाना चाहिए, हर किसी को एक जैसी चीज सीखनी चाहिए। हो सकता है कि उनके जीवन के अनुभव अलग हो, उनके विवेक का स्तर अलग हो, लेकिन वे किस पृष्ठभूमि से आते हैं, यह फिर भी कई चीजें तय करता है। अफसोस की बात है कि हमने इन सारे पहलुओं पर विचार नहीं किया।


 


 


साभार


ईशा

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