शिक्षा व्यवस्था में बड़े स्तर पर बदलाव और सही निवेश की जरूरत

शिक्षा व्यवस्था में ताजा सर्वे से जो रिपोर्ट सामने आई है। उससे लगता है की शिक्षा के क्षेत्र में स्थिति काफी नाजुक है। अगर यही हाल रहे तो भविष्य में इसका परिणाम घातक भी हो सकता है। गैर सरकारी संगठन ‘प्रथम’ की शिक्षा पर वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (असर) ने माध्यमिक शिक्षा की बदतर स्थिति को सामने रखने के साथ ही शिक्षा व्यवस्था को लेकर गंभीर सवालों को रेखांकित किया है। करीब एक दशक से यह संस्था प्राथमिक शिक्षा की स्थिति पर वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करती रही है, लेकिन पहली बार उसने इसका दायरा बढ़ाते हुए आठवीं से बारहवीं तक के 14 वर्ष तक के बच्चों को शामिल किया, जिससे स्तब्ध कर देने वाली जानकारियां सामने आई है। अभी तक यही माना जाता रहा है कि प्राथमिक शिक्षा की स्थिति बेहतर नहीं है, जहां पिछले वर्षो की रिपोर्ट में ‘प्रथम’ ने बताया था कि आज भी चैथी या पांचवी तक के बहुत से बच्चे पहली या दूसरी कक्षा के स्तर के गणित के सवाल नहीं हल कर सकते या फिर हिंदी या अंग्रेजी के सामान्य शब्दों की भी ठीक से जानकारी नहीं है। ताजा रिपोर्ट बताती है कि 14 से 18 वर्ष की उम्र के एक चैथाई बच्चे न तो अपनी भाषा में ठीक से पढ़ सकते हैं और न पैसे गिन सकते हैं, करीब पचास फीसदी बच्चे तीन अंकों का मामूली गुणा-भाग नहीं कर सकते, 36 फीसदी बच्चों को यही पता नहीं है कि देश की राजधानी कहां है और 14 फीसदी बच्चे देश का नक्शा तक नहीं पहचानते । यह रिपोर्ट इसी तरह के आंकड़ो से भरी पड़ी है, जिससे शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के मामले में भारी असंतुलन का भी पता चलता है। अलबŸाा संतोष की बात यह है कि चैदह वर्ष तक के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा कानून लागू किए जाने का फायदा हुआ है। किशोर वय के सिर्फ 5.3 फीसदी बच्चे ही अभी स्कूल नहीं जाते। यह रिपोर्ट दिखाती है कि शिक्षा के अधिकार कानून के दायरे को पार करने के बाद भी बच्चों ने स्कूल नही छोड़ा है।और पंद्रह वर्ष के 92 फीसदी से भी अधिक बच्चे स्कूल जा रहे है। लेकिन सिर्फ स्कूल जाने भर से बात बन नहीं रही है। हैरत की बात यह है कि इधर के कुछ वर्षो में मोबाइल फोन आधारित इंटरनेट का विस्तार तो काफी हुआ है, लेकिन स्कूलों में आज भी बुनियादी चीजों का अभाव है। जाहिर है, शिक्षा व्यवस्था में वैज्ञानिक सोच के साथ एक बड़े बदलाव की जरूरत है, ताकि जिस युवा आबादी को जनसांख्यिकी लाभांश के रूप में देखा जा रहा है, की वह आने वाले समय में बोझ न बन जाए। युवा पीढ़ी के देश में अगर नौजवान शिक्षित ही नहीं होगा तो वह रोजगार कैसे कर पाएगा। कुछ लोग भारत को विश्व गुरू बनाने का सपना देख रहे है। ऐसे मे अगर भारत का युवा शिक्षित ही नहीं होगा तो वह भारत को विश्वगुरू बनाने में कैसे अपना सहयोग दे पाएगा। जो लोग भारत को विश्व गुरू बनाने का सपना देख रहे है। उन लोगो को पहले जमनी हकीकत से रूबरू होना चाहिए। जब तक भारत का हर व्यक्ति शिक्षित नहीं होगा तब तक भारत कैसे विश्वगुरू बनेगा। इसके लिए सबसे पहले उन लोगो को भारत के प्रत्येक नागरिक को शिक्षित करना होगा। और एक ही नारा लेकर चलना होगा की शिक्षा हर समाज और हर परिवार में प्रगति की किरण है। कहते है की शिक्षा से ही समाज और परिवार का विकास होता है। और जब समाज और परिवार का विकास होगा। तब सबका विकास होगा। और जब सबका विकास होगा तो भारत का विकास होगा। और भारत का विकास होना मतलब भारत का विश्वगुरू बनना।


 


 

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