गुणवत्तापरक शिक्षा मुहैया कराने के लिए सरकार ने फिर से नया ख्वाब बुना

उत्तराखंड के सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में गुणवत्तापरक शिक्षा मुहैया कराने के लिए सरकार ने फिर से नया ख्वाब बुना है। कहा जा रहा है कि इन स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों को पब्लिक स्कूलों के बच्चों से टक्कर लेने लायक बनाया जाएगा। योजना सरकारी स्कूलों के बच्चों को इंगलिश स्पीकिंग के साथ ही विषय के साथ अपडेट रखने की है। हर हफ्ते शनिवार को इंगलिश स्पीकिंग डे मनाया जाएगा। इस दिन विद्यालय की प्रत्येक गतिविधि व आम बोलचाल अंग्रेजी में होगी। यही नहीं, बच्चों का बौद्धिक स्तर परखने के लिए विद्यालयों में अब हर महीने परीक्षा भी ली जाएगी। यानी छात्र-छात्रओं ने इस दरम्यान कितना विषय ज्ञान हासिल किया, मासिक परीक्षा के आधार पर इसका आंकलन किया जाएगा। इसके लिए शिक्षा महानिदेशालय में बाकायदा गुणवत्ता प्रकोष्ठ का गठन करने की बात कही जा रही है। निरूसंदेह सोच में कोई बुराई नहीं, लेकिन अमल और परिणाम को लेकर सवाल उठने लाजिमी हैं। जहां तक पब्लिक स्कूलों की बराबरी का सवाल है, यह सपना अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय से ही देखा जा रहा है। राज्य गठन के बाद फिर से इस मुहिम को परवान चढ़ाने की कवायद हुई, लेकिन अभी तक पहला पायदान भी नहीं लांघ पाए। दरअसल, योजनाएं तो बनीं, लेकिन इनके क्रियान्वयन के बुनियादी पहलुओं पर गंभीरता से गौर ही नहीं किया गया। अगर कभी, प्रयास भी हुए तो राजनीतिक हस्तक्षेप ने बेड़ा गर्क कर दिया। कहने में कोई संकोच नहीं कि सरकारी व्यवस्थाएं इसमें सबसे बड़ा रोड़ा है। अपने-पराये के मोह से सरकारें गुजरे सत्रह सालों में बाहर नहीं निकल पाईं। यही वजह है कि शैक्षिक गुणवत्ता अब भी ख्वाब बना हुआ है। सूरतेहाल बहुत बड़े बदलाव की उम्मीद करना खुद को अंधेरे में ही रखना जैसा होगा। सरकारी स्कूलों के हालात किसी से छिपे नहीं हैं। कुछ शहरों को छोड़ दें तो स्कूलों में ताले खुलवाने की व्यवस्था चुनौती बना हुआ है। सुदूरवर्ती पर्वतीय अंचलों में तो स्कूलों में पठन-पाठन ठेके पर चल रहा है। विषय विशेषज्ञ शिक्षकों की तैनाती की चर्चाएं कमरों से बाहर नहीं निकल पा रही हंै। इन स्थितियों में सरकार अब जो नया ख्वाब देख रही है, वह कैसे परवान चढ़ पाएगा, यह चिंतन का विषय है। सरकार को इस तरह की योजनाएं बनाने से पहले पठन-पाठन के बुनियादी इंतजामों करने होंगे। सिर्फ और सिर्फ योजना बना देने से कुछ नहीं बदलने वाला।


साभार दैनिक जागरण

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