आज का दिन कई मामलों में ऐतिहासिक है। भारत सहित दुनियाभर में क्रिसमस का पर्व बड़े ही हर्षोल्लस के साथ मनाया जा रहा है। जब विश्व ईसा मसीह की जयंती की खुशी में डूबा है, तब देश में विकास की अटल नींव रखने वाले पूर्व प्रधानमंत्री और ‘भारत रत्न’ अटल बिहारी वाजपेयी का 93वां जन्मदिवस विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से मनाया जा रहा है। विश्व में ऐसे कई युगपुरुषों का जन्म हुआ है, जिन्होंने अपने राष्ट्र के जीवन और उसके कालचक्र पर अमिट छाप छोड़ी है। उन विद्वानों के स्वभाव और प्रकृति के कारण उस देश की न केवल राजनीतिक, अपितु नागरिक जीवन के विविध आयाम भी प्रभावित हुए हैं। अटलजी की गणना इसी श्रेणी में होती है। अटलजी से मेरा निजी परिचय वर्ष 1980 से है। उनकी राजनीतिक और कूटनीतिक दक्षता, दूरदर्शिता, वाक्पटुता, बौद्धिकता और कुशल नेतृत्व से संबंधित कई किस्से सार्वजनिक हैं, किंतु उनसे जुड़े कुछ ऐसे भी पहलू हैं, जो या तो उजागर ही नहीं हुए या फिर बहुत कम लोगों को उसकी जानकारी है। उन सीमित लोगों की सूची में मैं भी शामिल हूं। अटलजी के जन्मदिवस के उपलक्ष्य पर मैं उनके जीवन से जुड़ी ऐसी ही तीन घटनाओं का उल्लेख करना चाहूंगा। बात नब्बे के दशक की है, जब हिमाचल प्रदेश में एक चुनावी सभा के लिए मैं उनके साथ एक छोटे निजी हवाई जहाज में यात्र कर रहा था। हमें धर्मशाला उतरना था। मेरे साथ की सीट पर अटलजी आराम कर रहे थे। अचानक मुझे कॉकपिट में बुलाकर को-पाइलट ने पूछा, ‘क्या मैं देखकर बता सकता हूं कि नीचे जो शहर दिखाई पड़ रहा है, वह धर्मशाला ही है?’ मेरे लिए यह अनुमान कर पाना असंभव था। हवाई जहाज में बिना रेडियो संचार यंत्र और दूसरे विश्वयुद्ध का दिशा-बोधक मानचित्र होने के कारण दोनों पायलट किंकर्तव्यविमूढ़ थे।
मैं चिंतित मुद्रा में कॉकपिट से बाहर आया तब अटलजी ने पूछा, ‘कोई परेशानी है?’ मैंने उन्हें वस्तुस्थिति की जानकारी दी, तब मेरी बात सुनकर वाजपेयीजी पुनः सो गए। इस बीच हवाई जहाज आसमान में चक्कर काटता रहा। मैं और मेरे साथ के अन्य बंधु इस दुश्चिंता में घुले जा रहे थे कि कहीं विमान का ईंधन खत्म न जाए और जल्दबाजी में हम चीन की सीमा में न चले जाएं। जब अटलजी उठे तब वह ऐसे गंभीर और खतरनाक क्षण में भी खुशमिजाज थे। उन्होंने मजाक करते हुए कहा, ‘तेल खत्म हो जाने पर हवाई जहाज पहाड़ों से टकराकर चूरचूर हो जाएगा। मैं देख रहा हूं कि मेरा मृत शरीर राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जा रहा है।’ वाजपेयीजी पूर्णतः सामान्य थे और वहीं हम सभी के भय से हाथ-पांव फूल गए थे। सौभाग्य से इंडियन एयरलाइंस का एक जहाज हमें उतरता दिखा। उसके पीछे हमारा विमान भी उतर गया। तब ज्ञात हुआ कि हम सभी कुल्लू में थे। यह एक बेहद रोमांचक यात्र थी। विपदा की उस बेला में वाजपेयीजी की धीरता और साहस को मैं आज भी सलाम करता हूं। अटलजी एक भावुक व्यक्ति और कवि हृदय के रूप में विख्यात रहे हैं, किंतु उनमें एक लौहपुरुष भी छिपा है, इसका भान तब हुआ जब नवंबर 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के सिख विरोधी दंगों के दौरान उत्पातियों की एक भीड़ ने उनके रायसीना निवास के सामने स्थित टैक्सी स्टैंड को जलाने की कोशिश की। उस समय अटलजी सांसद नहीं थे, लिहाजा उनके साथ एक ही सुरक्षाकर्मी मौजूद था, फिर भी वह अकेले ही उपद्रवियों से भिड़ गए। पुलिस के पहुंचने तक वह दंगाइयों को रोकते रहे और उनकी हिम्मत देख उन्मादी लोग चुपचाप चलते बने।
मेरी तीसरी घटना भी अटलजी के साहस का यशज्ञान करती है। 22 जनवरी, 1992 को एक व्यक्ति ने लखनऊ से दिल्ली की उड़ान भर रहे इंडियन एयरलाइंस के विमान को अगवा कर लिया। उस समय विमान में सवार 48 लोगों के सिर पर मौत मंडरा रही थी। उस कालखंड में उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन था। लखनऊ के सर्किट हाउस में अटलजी ने पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ भोजन करना शुरू ही किया था कि तभी तत्कालीन जिलाधिकारी मामले की सूचना लेकर वहां पहुंच गए। अधिकारी की बात सुनते ही अटलजी ने स्थिति की गंभीरता को समझा और खाना छोड़ तुरंत हवाईअड्डे के लिए रवाना हो गए। विमान को अगवा कर लखनऊ की ओर रुख करने वाले अपहरणकर्ता ने जब अटलजी के समक्ष समर्पण की मांग रखी, तब सुरक्षा कारणों से उन्हें प्रशासनिक व सुरक्षा अधिकारियों ने सलाह दी कि वह वहां नहीं जाएं, किंतु अटलजी सलाह ठुकराते हुए अकेले ही हवाई जहाज में चले गए, जहां उस उग्रवादी ने उनके सम्मुख हथियार डाल दिए। ऐसे कितने राजनीतिज्ञ होंगे, जो जनहित के लिए अपनी जान जोखिम में डालने का खतरा उठाएंगे? 25 दिसंबर, 1924 को जन्मे अटलजी छात्र जीवन में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए, जिसका एकमात्र उद्देश्य मातृभूमि की निरूस्वार्थ सेवा करना रहा। इसी भावना के साथ आज भी देशभर में संघ के लाखों-करोड़ों कार्यकर्ता सक्रिय हैं। जब भी स्वतंत्र भारत के स्वर्णिम विकास यात्र की गाथा लिखी जाएगी, तब अटलजी का नाम सुनहरे अक्षरों से अंकित किया जाएगा। ईश्वर से प्रार्थना है कि अटलजी को स्वास्थ्य लाभ दें। पाठकों को क्रिसमस और नववर्ष की असीम शुभकामनाएं।
(लेखक राज्यसभा के पूर्व सदस्य एवं स्तंभकार हैं)
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