नब्बे के दशक में एक विज्ञान कथा फिल्म आई थी गट्टका । इस कहानी में जो बच्चे जेनेटिक इंजीनियरिंग से पैदा होते हैं वे बड़े होकर प्रोफेशनल काम करने लगते हैं। और बाकि बड़े होकर मजदूर भर रह जाते हैं। जेनेटिक इंजीनियरिंग के खतरों की ऐसी कल्पनाएं कोई नई नहीं हैं। आल्डस ह्क्सले की ब्रेव न्यू वल्र्ड के जमाने से ही ये चल रही हैं। लेकिन ऐसा कुछ भी होता नहीं दिख रहा। जितना हम मानव जीनोम के बारे में जानते जा रहे हें। उतनी ही सुपर ह्रूामन पैदा करने की संभावनाएं कम होती दिख रही हैं। अभी हम उन्हीं जेनेटिक खामियों को समझ्ाने के आस पास सक्रिय हैं , जिनकी वजह से कई बीमारियां होती हैं, लेकिन वजह से कई बीमारियां होती हैं, लेकिन एक बड़ा बदलाव अब सामने आता दिख रहा है।
पिछले हफ्ते अमेरिका की नेशनल एकेडमी आफ साइंस ने एक नई तकनीक का ब्यौरा दिया है, जिसका नाम है जीन ड्राइव। फिलहाल इस तकनीक के जरिए मच्छरों की एक नई पीढ़ी तैयार की जा रही है, जिनसे पैदा होने वाली सभी मच्छर बांझ्ा होंगी। यानि इस तरीके से इस धरती से सभी मच्छरों का खात्मा किया जा सकेगा। इसी तकनीक का इस्तेमाल करके खर पतवारों से मुक्ति पाकर कृषि उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। जाहिर है यह तकनीक हमारे पूरे पर्यावरण को इस तरह बदल सकती है कि फिर वापसी शायद संभव न हो। और ठीक यहीं पर नैतिकता का सवाल खड़ा हो जाता है। हम ठीक तरह से नहीं जानते हैं कि मच्छरों की संपूर्ण प्रजाति का पूरी तरह सफाया करने का नतीजा क्या हो सकता है। संभव है कि हम कुछ ऐसे जीवों का भोजन ही पूरी तरह छीन लें जो मच्छरों के भक्षण पर जिंदा हैं। या इसकी वजह से कई तरह के पौधों का परागण ही रूक जाए । ऐसे ही हम मानव जीनोम में बदलाव के नतीजे भी ठीक तरह से नहीं जानते। कहीं हम ऐसा समाज तो नहीं बना लेंगे जहां जेनेटिक बदलाव वाले लोगों व प्राकृतिक ढंग से पैदा लोगों के बीच एक वर्गभेद बन जाए । कहीं ऐसा समाज न बन जाए, जो खामियों वाले बच्चों और लोगों के प्रति ज्यादा असहिष्णु हो।
इस बीच मानव जीनोम तैयार करने की लागत भी घटती जा रही है। इसी के साथ डिजाइनर बच्चे तैयार करने की संभावना भी बढ़ती जा रही है। स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हेनरी ग्रीले ने अपनी नई किताब द एंड आफ सेक्स में कहा है कि 20 से 40 साल बाद पैदा होने वाले ज्यादातर बच्चे परखनली शिशु होंगे। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि वे अपने अभिभावकों से ज्यादा स्वस्थ्य हों। इसलिए इस समय जो तकनीक विकसित हो रही है उनका नियमन सख्त करने की जरूरत है। ऐसी तकनीक के बारे में फैसले इतने अहम हैं कि उनहें सिर्फ वैज्ञानिकों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। इसका असर व्यापक होगा। इसलिए समाज की चिंताओं को शामिल करना जरूरी है। इस तकनीक पर सार्वजनिक बहस का समय आ गया है।
लिंडा गैडेस
ब्रिटिश विज्ञान लेखिका
साभार-हिन्दुस्तान हिन्दी दैनिक
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