डिजिटल दुनिया में अब भी पीछे क्यों हैं महिलाएं

दुनिया में लगभग आधी आबादी महिलाओं की है, फिर भी इंटरनेट उपयोग करने वाली महिलाओं का अनुपात पुरुषों की तुलना में 12 फीसदी कम है। हालांकि महिलाओं को जब कभी पुरुषों की तरह इंटरनेट की सुविधा मिली, उन्होंने लगभग चमत्कार किया है। ऐसा नहीं है कि पुरुषों के हाथों में यह तकनीक फिजूल है, मगर औरतें संसाधनों का बेहतर प्रबंधन करना जानती हैं। एक घटना साझा करता हूं। इस साल की शुरुआत में हम पुडुचेरी में लड़कों और लड़कियों के अनाथालयों में गए। वहां हमने 14 से 17 वर्ष के लड़के-लड़कियों से मुलाकात की। हमने उन्हें लैपटॉप व मोबाइल दिया और कहा कि गूगल पर वे जो कुछ देखना चाहते हैं, उसे देखें। लड़कों ने अपने पसंदीदा अभिनेता, क्षेत्र विशेष के फूल, वीडियो गेम और पर्यटन स्थलों को खोजा, तो लड़कियों ने मेहंदी आर्ट, ब्यूटीशियन कोर्स और अपने रोल मॉडल के वीडियो देखे। बेशक हर बच्चे के लिए इंटरनेट का अपना महत्व था, लेकिन यहां लड़कियों की सोच लड़कों से कहीं आगे दिखी। फिर भी, घर, समुदाय या गांव में महिलाओं के फोन की चाबी पुरुषों के हाथों में होती है। जीएसएमए की 2015 की कनेक्टेड वुमेन रिपोर्ट बताती है कि निम्न व मध्य आय वर्ग वाले देशों में पुरुषों की तुलना में 14 फीसदी कम महिलाओं के पास अपना मोबाइल है। भारत में भी हालात बेहतर नहीं हैं। हमारे यहां इंटरनेट सामाजिक, सांस्कृतिक, व्यावहारमूलक, आर्थिक व राजनीतिक सुधार का वाहक रहा है, पर 2016 में आई विश्व बैंक की रिपोर्ट बताती है कि देश की लगभग 80 फीसदी आबादी इंटरनेट से दूर है। इंटरनेट इस्तेमाल करने वाली आबादी में महिलाओं की हिस्सेदारी महज 29 फीसदी है।


    इसकी बड़ी वजह महिलाओं के सामने पुरुषों का द्वारपाल के रूप में खड़े रहना है। फोन इस्तेमाल करने, अपने पास मोबाइल रखने, दोस्त व परिजनों से बात करने जैसे सभी कामों के लिए उन्हें पुरुषों की अनुमति लेनी होती है। ट्रिगरिंग मोबाइल इंटरनेट यूज अमॉन्ग मेन ऐंड वुमेन इन साउथ एशिया शीर्षक से जारी जीएसएमए की रिपोर्ट खुलासा करती है कि भले ही मोबाइल इंटरनेट इस्तेमाल करने के उत्सुक सभी लोग इससे मिलने वाले फायदे से इत्तफाक रखते हैं पर वे आमतौर पर यही मानते हैं- मेरे जैसों के लिए यह नहीं है। और यह धारणा पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक दिखती है। वर्षो से पुरुष-सत्तात्मक व्यवस्था में रहने की वजह से महिलाएं भी आमतौर पर यही मानती हैं कि इंटरनेट उनके लिए ज्यादा महत्व नहीं रखता। मगर हर समुदाय व शख्स के लिए इंटरनेट प्रासंगिक है, और यह जरूरी है कि यह मेरे जैसों के लिए नहीं है जैसी धारणाओं को दूर किया जाए। 106 वर्ष की यू-ट्यूब सनसनी मस्तनम्मा किसी आदर्श से कम नहीं हैं। आंध्र प्रदेश की इस उम्रदराज महिला की शादी 11 वर्ष में हुई थी और 22वें वर्ष में यह विधवा हो गईं, पर आज यह एक वीडियो ब्लॉगर हैं। खाना पकाने के इनके वीडियो वायरल हो चुके हैं और 7.4 लाख से अधिक सब्स्क्राइबर हैं। ऐसा नहीं है कि महिलाओं को अधिक से अधिक ऑनलाइन बनाने और डिजिटल विषमता पाटने की कोशिशें नहीं हो रही हैं, पर अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचने के लिए और भी संस्थागत दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। अच्छी बात है कि ऐसे प्रयास महिलाओं को ही नहीं जोड़ रहे, वे सामाजिक बदलावों के वाहक भी बन रहे हैं। स्टोवट्रेस ऐसा ही एक प्रयास है। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी की रिपोर्ट कहती है कि पारंपरिक चूल्हे से निकलने वाले धुएं से हर साल 40 लाख लोग मरते हैं। नेक्सलीफ एनालिटिक्स द्वारा तैयार स्टोवट्रेस मोबाइल पर आधारित सस्ता, तापमान मापने वाला एक निगरानी उपकरण है। यह कार्बन की मात्र कम करने में मदद करता है। इसी तरह, मेडहेल्थ टीवी कई भारतीय भाषाओं में गर्भ पूर्व अवस्था, गर्भावस्था, प्रसव और गर्भधारण के बाद की तमाम जानकारियां वीडियो के जरिये साझा करती है। उत्तर प्रदेश सरकार के विकल्प एप ने भी महिलाओं को पुलिस में अपनी शिकायत दर्ज कराने में काफी मदद की है। साफ है, ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं तकनीक को लेकर उत्सुक हुई हैं, पर अब भी हमें लंबा रास्ता तय करना है। महिलाओं को इंटरनेट से जोड़ने के लिए अब भी काफी कुछ किया जाना शेष है।


(ये लेखक के अपने विचार हैं)


                     साभार हिन्दुस्तान

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