शिक्षा महकमे में जारी हैं प्रयोग

उत्तराखंड में शिक्षा महकमा व्यावहारिक दिशा में बढ़ने की बजाय ‘प्रयोगशाला’ ज्यादा नजर आ रहा है। कभी ड्रेस कोड, कभी वाट्सएप पर हाजिरी और न जाने क्या-क्या....... प्रयोग हो रहे हैं। वह बात समझ से परे है। कि आखिर क्यों इन धरातलीय व्यवस्थाओं के लिए प्रयोगों की जरूरत पड़ रही है। कहने में हिचक नहीं की शैक्षिक गुणवत्ता और शिक्षा को रोजगारपरक बनाने जैसे एजेंडे हाशिये दिखाई पड़ रहे हैं। विडंबना यह कि इसे न महकमा समझने को तैयार और न ही शिक्षक। हां, एक दूसरे को आंखे तरेर कर यह जतलाने की कोशिशें जरूर हो रही है कि अगर उन्हें कंफर्ट जोन से बाहर निकालने का प्रयास किसी की भी तरफ से हुआ तो फिर खैर नहीं....। नीति और नीयत दोनों में खोट नजर आता है। लेकिन इसे मानने को कोई तैयार नही है। पठन और पाठन नई व्यवस्था नहीं, इसमें सभी पक्षों की जिम्मेदारियां तय हैं। सरकार और महकमे को क्या करना है, सब कुछ तयशुदा है। फिर भी, शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों को यह बतलाना पड़े कि उन्हें समय पर स्कूल पहुंचाना है, अच्छा रिजल्ट देना तो, निःसंदेह चिंता का विषय है। विभाग के तकरीबन सत्तर हजार कार्मिकों को अगर वाट्सएप के जरिये अपनी हाजिरी का प्रमाण देने को कहा जा रहा हैं।


तो सोचने वाली बात है कि ऐसे हालात क्यों बने। इसके लिए कौन जिम्मेदार है, व्यवस्था या व्यक्ति। सवाल यह कि यदि व्यवस्था जिम्मेदार है तो फिर क्यों इस तरफ अभी तक नजरें फेरते आए। व्यक्ति दोषी है तो क्यों उसे इतनी छूट दी गई। अब एक दूसरे की तरफ अंगुली उठाकर अपना दामन बचाने की जुगत कतई अच्छी नहीं मानी जा सकती। दो राय नहीं कि तरक्की के लिए नित प्रयोग होते रहने चाहिए। यहीं नहीं, इनका लक्ष्य भी तय होना चाहिए, मगर वर्तमान में शिक्षा महकम में जो प्रयोग हो रहे हैं उनमें शैक्षिक उन्नयन दूर तलक नजर ही नहीं आता है। सभी पक्षों को इस पर गंभीरता से मनन करना चाहिए, अन्यथा शैक्षिक उन्नयन की बातें सरकारी रवायत से ज्यादा कुछ साबित नहीं होने वाली।


                                 

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