कला सृजन के आवेग से मिलती है आंतरिक खुशी

मेरा जन्म जापान के दक्षिणी द्वीप क्यूशू में हुआ था और अपने जीवन के पहले वर्ष ही मैं वहां रहा। बाद मैं पैंतालिस की उम्र में क्योटो के उत्तरी तराई मे रहने के लिए लौट आया, जहां मैं सीमित संसाधनों के साथ रहता था। यह पश्चिम की दुनिया से बिल्कुल अलग और दूर था, लेकिन मेरे लिए परिचित था। मुझे लगा कि तराई में मैं अकेला श्वेत व्यक्ति हूँ और मैं पूरी तरह से अकेला रहता था। यह एक अद्भुत जगह थी। मैं अमेरिकी कवियों की तरह टंका (पांच पंक्तियों की कविता) या हायूक लिख सकता था, लेकिन मैं वैसी कविताएं नहीं लिखना चाहाता था। इसलिए मैं हफ्तों पढ़ता ही रहा और अंत में फैसला किया कि मैं मुक्त छंद की कविताएं लिखूंगा। मैंने पूरी तरह से संतोषप्रदा कविताएं लिखने की कोशिश की, क्योंकि मैं आसपास के परिवेश से बिल्कुल जुड़ गया था-खेतों में धान के पौधे लगाए जा रहे थे ओर उन खेतो में मेंढक बहुत खुश होकर गा रहे थे। वे रात भर मुझे सोने नही देते थे। और धीरे-धीरे मैंने इनके बारे में लिखा। जब मैं अपने जीवन के तथ्यों को कविता में प्रकट करता हूँ, तो उससे खुशी नहीं मिलती है। कुछ लोग कहते है, हमें राहत देती है। यह बहुत-ही संकीर्ण और नैतिकतापूर्ण आग्रह है कि कविता को हमें राहत प्रदान करना चाहिए। मैंने निजी भावनाओं के बारे में लिखने के लिए प्रकृति को मुखौटे के रूप् में इस्तेमाल किया है।
लेखक हेनरी कोल
साभार - अमर उजाला

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