जड़ से शुरू हो इलाज

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में देश की बदहाली पर जायज चिंता जताई यद्यपि बिहार के संदर्भ में ऐसी चिंता शिक्षा प्रणाली की जड़ यानी प्राथमिक शिक्षा से ही शुरू हो जाती है। चूंकि प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह पटरी से उतरी हई है, इसलिए सिर्फ उच्च शिक्षा की चिंता करने से काम नहीं चलेगा। बिहार में यह ‘इलाज’ प्राथमिक शिक्षा के स्तर से ही शुरू करना होगा। दुर्भाग्यपूर्ण है कि मिडडे मील योजना अपने मकसद से पूरी तरह भटक गई है। यह योजना ग्रामीण बच्चों को विद्यालयों की ओर आकृष्ट करने और उन्हें पौष्टिक भोजन देने के लिए शुरू की गई थी यद्यपि अब यह योजना भ्रष्टाचार का जरिया बनकर रह गई है। यह बेहद लापरवाही के साथ संचालित की जा रही है। बच्चों के भोजन में जहरीले जीव और कांच-कंकड़ तक मिलने के प्रकरण सामने आते रहते हैं। इस योजना का सर्वाधिक दुखद पहलू यह है कि अधिसंख्य विद्यालयों में बच्चे सिर्फ मिडडे मील के लिए स्कूल आते हैं। वे भोजन करके कक्षा में पढ़ने के बजाय घर चले जाते हैं। प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षकों की योग्यता एक अन्य बड़ी चुनौती है जिससे पार पाने का कोई उपाय फिलहाल तलाशा नहीं जा सका है। भर्ती प्रक्रिया की खामियों के चलते इन विद्यालयों में बड़ी संख्या में ऐसे युवा शिक्षक नियोजित हो गए हैं जिनमें शिक्षक बनने की वास्तविक योग्यता नहीं है। ये शिक्षक राज्य की शिक्षा प्रणाली के लिए बड़ी समस्या साबित हो रहे हैं। सरकार को ऐसे शिक्षकों के बारे में कोई कार्ययोजना जरूर बनानी चाहिए क्योंकि युवा होने के कारण इनका लंबा सेवाकाल शेष है। यदि ये मौजूदा रूप में ही शिक्षक की भूमिका निभाते रहे तो तय मानिए कि राज्य की शिक्षा प्रणाली का इससे भी बुरे दिन देखना बाकी है। इतनी बड़ी संख्या में नियोजित शिक्षकों की सेवा समाप्ति तो संभव नहीं। बेहतर होगा कि इनके लिए विषयवार पाठ्यक्रम तैयार करके प्रशिक्षण दिया जाए तथा इसकी समाप्ति पर एक परीक्षा के जरिए आकलन किया जाए कि वे अभी भी शिक्षक बनने लायक विषय-ज्ञान रखते हैं या नहीं। जब तक प्राथमिक शिक्षा की ऐसी जटिल समस्याओं का समाधान नहीं किया जाता, माध्यमिक और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव की अपेक्षा बेमानी है।


दैनिक जागरण से साभार


(स्थानीय संपादकीय बिहार)

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