जब मुद्रित माध्यमों यानी पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं के अस्तित्व पर ही बहस छिड़ी हो, तब ‘पुस्तकांचे गाव’ यानी पुस्तकों के गांव की संकल्पना का मूर्त रूप लेना इतिहास का एक अध्याय बन जाना ही है। देश के पहले पुस्तक ग्राम की यह आदर्श धरोहर दरअसल भारत के पुस्तक-प्रेमियों और पाठकों के समर्पित प्रयासों से अस्तित्व में आ सकी। ‘स्ट्रॉबेरी विलेज’ यानी स्ट्रॉबेरी फल की खेती और उत्पाद के लिए मशहूर महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र के ऐतिहासिक शहर महाबलेश्वर की गोद में बसे भिलार गांव में उस दिन एक नया इतिहास लिखा गया, जब ‘पुस्तकांचे गाव’ का शुभारंभ हुआ और इस छोटे से अनजाने गांव की विश्व के ज्ञान-विज्ञान प्रसार की मुहिम के नक्शे पर एक सशक्त उपस्थिति दर्ज हो गई।
भारत के पुस्तक और पुस्तकालय आंदोलन का यह नया अध्याय भारतीय ‘रेनेशां’ के प्रवर्तक राजा राममोहन राय, बड़ौदा नरेश सयाजी राव गायकवाड़ और ‘ग्रामे-ग्रामे पाठशाला, मल्लशाला गृहे-गृहे’ के उद्घोषक महामना मदनमोहन मालवीय की ज्ञान-समृद्ध, सशक्त समाज की परिकल्पना का एक मूर्त रूप है। महाराष्ट्र के एकमात्र हिल स्टेशन महाबलेश्वर और पुणे शहर के बीच सड़क किनारे बसे दो-ढाई किलोमीटर विस्तार वाले भिलार गांव की आबादी हजार से ज्यादा नहीं है, लेकिन पुस्तकों के लिए एक जुनून इस गांव की खासियत है। हर साल टन से ज्यादा स्ट्रॉबेरी-कारोबार से करोड़ों रुपये कमाने वाला यह गांव अपने कई घरों में पुस्तकों के बड़े संग्रह के कारण तमाम लोगों के लिए ज्ञान का तीर्थ बन गया है।
‘हर घर पुस्तकालय’ के नारे के साथ स्थापित पुस्तकालयों में हर घर के बाहर संगृहीत पुस्तकों से संबंधित रचनाकारों के चित्र लगाए गए हैं। प्रत्येक घर के एक हॉल में पाठकों के बैठकर पढ़ने की व्यवस्था है, जिसकी देख-रेख घर की महिलाएं, बच्चे और पुरुष मिलकर करते हैं। घरों के पुस्तकालयों में संस्कृति, इतिहास, मराठी परंपरा, अध्यात्म, धर्म, संत साहित्य, सुधार आंदोलन और खेल-कूद के साथ-साथ यात्रा वृत्तांत, पर्यावरण, लोक साहित्य, स्त्री-बाल केंद्रित साहित्य, आत्मकथाओं व पवार्ें-त्योहारों आदि विषयों से संबंधित हजार से अधिक पुस्तकें संगृहीत हैं। महाराष्ट्र की सह्याद्रि पर्वत शृंखला की गोद में बसे भिलार गांव के लोग हर साल जनवरी माह में आयोजित होने वाले स्ट्रॉबेरी महोत्सव की ही तरह गांव के पुस्तकालयों में आने वाले अतिथियों के स्वागत के लिए घर का भोजन और स्ट्रॉबेरी फल का पैकेट उपहार स्वरूप देने में गौरव का अनुभव करते हैं।
‘पुस्तकांचे गाव’ का उद्घाटन करते हुए राज्य के मुख्यमंत्री ने इस गांव के लिए अनेक सार्वजनिक विकास योजनाओं व पुस्तक-प्रेमियों के लिए अनेक सुविधाओं की जो रूपरेखा घोषित की, उससे यह उम्मीद जगती है कि भारत का यह पहला पुस्तक ग्राम ज्ञान के मुरीदों और देश-दुनिया के पुस्तक-प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र बनेगा। भिलार गांव को यूनेस्को का ‘बुक कैपिटल’ खिताब दिलाने की भी मंशा है। अगर इसमें सफलता मिलती है, तो यह भारत का प्रथम ‘बुक कैपिटल’ बन जाएगा। देश के सैकड़ों प्रकाशकों व संग्रहकर्ताओं ने इन पुस्तकालयों के लिए पुस्तकें देने की घोषणा की है।
पुस्तक ग्राम ‘पुस्तकांचे गाव’ की इस परिकल्पना के पीछे वेल्स का अनुभव है। इसे वेल्स शहर के ‘हे-ऑन-वे’ नामक नेशनल बुक टाउन की प्रतिकृति कहा जा सकता है। साल 1988 से ही पुस्तक-प्रेमियों का तीर्थ बने इस नगर में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले ‘लिटरेरी फेस्टिवल’ में दुनिया भर के नामी-गिरामी साहित्यकार और साहित्य-प्रेमी भाग लेते हैं। भिलार में भी प्रतिवर्ष ऐसा ही साहित्य महोत्सव आयोजित करने की योजना है, जिससे भारत में साहित्यिक पर्यटन को बढ़ावा मिल सकेगा। इस योजना को मिले अभूतपूर्व जन-सहयोग का ही यह उदाहरण है कि गांव के घरों के स्वामियों और खासकर महिलाओं ने पुस्तकालय और वाचनालय स्थापित करने के लिए अपना घर देने की पेशकश की थी और ग्राम-पंचायत तथा व्यापारियों का भी इसमें पूरा सहयोग मिला। पुस्तकों और पुस्तकालयों के प्रति लोक रुचि को नया आयाम देती यह नजीर भारत के दूसरे भागों के पुस्तक-प्रेमियों को भी ऐसा ही कुछ करने को प्रेरित करेगी।
लेखक - किंशुक पाठक (असिस्टेंट प्रोफेसर, बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, पटना)
साभार - हिन्दुस्तान
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